Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir vas, 2023.payam,canas,exas, elas, Cenas,C3x20, प्रसंग - २ हीरसूरिजी, महाराज के रूपमें जब प्रसिद्ध नहीं थे तब की बात है. नई दीक्षा हुई थी. अभ्यास भी अच्छा चल रहा था. अल्प समय में ही संस्कृत-प्राकृत भाषाका ज्ञान प्राप्त कर लिया था । हीरहर्ष मुनिको वेदान्त, बौद्ध, सांख्य दर्शनका विशेष ज्ञान प्राप्त हो इस हेतु से इन के गुरू दानसूरि महाराजने देवगिरि भेजनेका निर्णय किया - देवगिरि जो वर्तमानमें दौलता-बाद नाम से प्रख्यात है, विक्रमकी १६ वी और १७ वी सदी में देवगिरि प्रकांड ब्राह्मण पंडितोका शहर माना जाता था, जैन परिवार काफी अल्प संखयामें थे । पेथडशाह द्वारा निर्मित हुआ भव्य जिनालय और पौषधशाला जहाँ विद्यमान है ! हीरहर्षमुनिके साथमें मुनि धर्मसागरजी तथा राजविमलजी को भेजा गया । वहाँ के ब्राह्मण पंडितोसे मुलाकात ली. उनको पढाने की तैयारी दिखाई. किंतु पैसे की बात की तो तीनो मुनि एक दुसरे का मुँह ताकने लगे । यहाँ एक भी ऐसा श्रावक नहीं था कि जिससे पगार के संबंध में बात की जाये वर्तमान समय में तो पगार पंडितजी आदि सब चीजो की सुलभता है. परंतु दुर्भाग्य है कि पढनेवाले नहीं है । तीनो मुनीराज उपाश्रयमें आये. चिंतामग्न और मौन । उसी वक्त एक श्राविका उपाश्रय में आई वंदन कीया शाता पूछी किंतु किसी मुनिने सामने प्रतिभाव न दिया अतः श्राविका विनयपूर्वक चिंता का कारण पुछा । धर्मसागरजीने संपूर्ण बात बताई - गुरूदेव आप निश्चिंत हो जाइये. बालमुनिजी यही रहेंगे. पंडीतजीको भी यही बुलायेंगे और पगार हम देंगे. यह बात सुनकर तीनो मुनि आनंदित हो गये | y sex20,30% 29,3x29,029, 00420,3x20,20x25, Deva 371 For Private and Personal Use Only

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