Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir exarbekas,sekas,nekas,exas,Deras,celar,sekas, में प्रवजीत हुये थे । आपकी विद्वता और योग्यता से सूरिजीने बादशाहके पास आपको रखा था । उन्हों का ऐसा प्रभाव बादशाह पर पड़ा था कि वो आगे के प्रकरणमें देखा गया है । अकबर के देहांत के बाद भी भानुचंद्रजी पुनःआगरा गये थे, और जहांगीरके पास फरमान कायम रखने का और उन्हें पालन कराने का हुकम कराया था | जहांगीर को भानुचन्द्रजी पर बहुत श्रद्धा थी । आपनें बुरहानपुरमें उपदेश के प्रभाव से दस नये मंदिर बनवाये थे । जालोर में एक ही साथ एकतीस पुरूषों को आपने दीक्षा दी थी । आपके तेरह पंन्यास और ८० विद्वान शिष्य थे। 1 और भी वाचक कल्याणविजय, पध्मसागरजी, उपाध्याय धर्मसागरजी गणि, सिद्धिचन्द्रजी, नंदिविजय, हेमविजयजी आदि भी धुरंधर मुनिवर थे । उन्होंने भी स्व-पर कल्याण के कार्य कर शासन की विजयपताका चारों और लहराई थी। -: सूरिजी का स्वर्गगमन : सूरिजी दिल्ही से विहार करते करते नागोर पधारे थे । इधर जैसलमेर का संध वंदनार्थ आया । उन्होंने सूरिजी की सोनैया से पूजा की थी। आप इधर से पीपाड पधारे तब खुशाली में ताला नामक ब्राह्मणनें आपके स्वागत में बहुत धन व्यय किया था । वहाँ से आप सिरोही-पाटण-अहमदाबाद होकर राधनपुर पधारे | संधनें छः हजार सोनामहोर से आपकी गुरू पूजा की थी। पुनः आप पाटण पधारे, उस समय आपको एक स्वप्न आया, "मैंने हाथी पर बैठकर पर्वतारोहण किया, और हजारो लोग वंदन कर रहे है ।' आपने सोमविजयको स्वप्न सुणाया, सोमविजयजीने कहा, आपको सिद्धाचल की यात्रा का महान लाभ होगा । WRESHESEARESHDSABSABSORBSITPSABSITESHRESTHETRESHESARIASIS 271 For Private and Personal Use Only

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