Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
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थोडे ही दिनों में आपकी पुनित निश्रा में पाटण से सिद्धाचलका छ'रीपालक संघका प्रस्थान हुआ । गुजरात-काश्मीर - बंगाल - पंजाब के बड़ेबडे शहरों में आदमिओं को भेजकर संघ में पधारने की विनंति की गई। बहुत लोग संघ लेकर आये । इस संधमें ७२ संघवी थे। इनमें श्रीमल्लसंधवी के ५०० रथ थे ।
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सोरठके सुबेदार नोरंगखांको विदित हुआ सूरिजी बडे संघ के साथ आ रहे है । उस समय उसनें आगेवानी लेकर आपका भव्य स्वागत किया । इस संधमें पचास गांव-नगरोंके संघ सम्मिलित हुये थे । कहा जाता है कि, इस यात्रा - संधमें एक हजार साधु और दो लाख मनुष्य थे । पालीताणा में आपको वंदना करते हुये डामर संघवीने सात हजार महमुंदिका (चलनी नाणा) का व्यय किया था ।
दीवबंदर की लाडकी बाई नामक श्रावीकानें विज्ञप्ति की, कि आप सब जगह सग्यग्ज्ञान का प्रकाश डालते हो मगर हम लोग तो अंधरे में गीरे है ।
सूरिजीने कहा, आपकी भावना हो ऐसा होगा । उस समय एक आदमीने पालीताणासे दीवबंदर जाकर संघ को सूरिजी की पधारने की वधामणी दी । संधनें उसको चार तोले की सोनेकी जीभ, वस्त्र और बहुत लहारीय भेट दी ।
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आप, पालीताणासे महुवा आदि होकर उना पधारे । उस समय जामनगर के दीवान अबजी भणसालीने आकर आपकी और सब साधुकी स्वर्णमुद्रासे नव अंगकी पूजा की और एक लाख मुद्राका लुंछन किया, उतना ही नहीं याचकोंको बहुत दान भी दिया ।
अब अपन सूरिजीके आंतरिक गुण-श्रेणी बताकर इन सुगुण- मौक्तिक से अपना जीवन सभर बनाइये ।
@MOONGO.06NGOK@ONGOKADONGOL
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