Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
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xosbexas,coxas, cemas.cekas,cekas,cekas,coxas, तो सारे राष्ट्र को वन्द्य और पूजनीय है । इसलिये उनका भारी सम्मान करना चाहिये । ऐसा सोचकर वें विचारमें बैंठ गये ।
एक दिन अपनी राजसभा में सूरिजीको 'जगद्गुरू' पदसे अलंकृत किया और इस पद-प्रदानके हर्षमें बादशाहनें पशु-पंखीको बंधन से मुक्त कर आजादी दे दी।
एक बार धर्मचर्चा चल रही थी । उस समय बीरबलको भी प्रश्न पूछने की अभिलाषा हुई इसलिये बादशाह की अनुज्ञा याची । बादशाहने मंजूरी दी । तब बीरबलने शंकर सगुण के निर्गुण, ईश्वर ज्ञानी या अज्ञानी इन दो विषय के प्रश्न पूछे, सूरिजीने तर्क और विद्वताके साथ ऐसा समाधान किया कि, बीरबल सुनकर बडे खुश हो गये ।
इस मुलाकात के बाद बहुत दिन तक सूरिजीको बादशाह मिल न सके | इसलिये सूरिजीको मिलनेकी सम्राटको बडी आतुरता हुई ।
सूरिजी पधारे और प्रभावोत्पादक उपदेश सुणाया । इस बार सूरिजीने सम्राटको महत्वका कार्य बतलाया कि, आप ! मेरे कथनानुसार कई अच्छे अच्छे कार्य करते हो । तो भी लोक कल्याण की भावना मेरे अंतरमें प्रगट हुई है कि, आप अपने राज्यमें से 'जजिया कर उठालो, जो तीर्थों में हर यात्रीके पास टेक्स लिया जाता है व बंद करा दो । कयोंकि इन दो बातों से लोकों को बहुत दुःख होता है, वह नहीं होगा । इससे जन-वर्गमें आनंद की लहर बढेगी और सब आपको कल्याण के आशीष देंगे । उसी समय बादशाहनें दोनों फर्मान लिख दिये।
सूरिजी दिल्लीमें रहे थे । मगर बीच-बीच मथुरा, ग्वालियर आदि तीर्थोकी यात्रार्थ भी पधारे थे । यात्रा करके पुनःसूरिजी आगरा पधारे तब सदारंग नामक श्रावाकनें हाथी, घोडा आदि कई पदार्थो का दान देकर भव्य स्वागत किया था । इधर बहुत समय हो जाने से विजयसेन सूरिजी के बार-बार पत्र आते थे । आप शीध्र गुजरात पधारिये । vasele deceasemaa.eekas/Per/a3,
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