Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
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@amemo,cavaayaage%28,Vayas, kas, कई कहने लगे बादशाह की सात पेढी दिखाई । कई अनुमान करने लगे, बादशाहको सोनेकी खाण दिखलाई । और कई बोलने लगे, फकीरकी टोपी उडाकर चमत्कार बताया । मगर ये सब किंवदन्ती है |ऐतिहासिक सत्यके विरूद्ध है मगर सूरिजी अपने चरित्र के प्रभावसे सब मनुष्य में सद्भाव उत्पन्न करते थे । उनका मुखारविंद इतना शान्त और प्रभावक था कि क्रोधसे जला हुआ क्रोधी मनुष्य उनके दर्शन से प्रशान्त बन जाता था । आपके चरित्र के प्रताप से बादशाह आपके वचन को ब्रह्मवचन तुल्य समझता था ।
क्योंकि अकबरमें यह एक अनुकरणीय गुण था । वह उस महात्मा को ज्यादा सम्मान देता था, जो निःस्पृही-निर्लोभी एवं जगतके सारे प्राणीयों को अपने समान देखनेवाला होता था । इस गुणके कारण बादशाह सूरिजीका सम्मान करता था और उपदेशानुसार कार्य करता था ।
बादशाह और सूरिजी के बीच खुल्ले दिलसे धर्म चर्चा चल रही थी | उस समय सूरिजीने कहा, मनुष्य मात्र को सत्य का स्वीकार करने की रूचि रखनी चाहिये । जीव अज्ञानावस्थामें दुष्कर्म करते है, मगर जब सज्ञानअवस्था प्राप्त होती है तब पश्चात्ताप के अगनमें जल कर शुद्ध हो जाना चाहिये ।
बादशाहने कहा, महाराज ! मेरे सब सेवक मांस खाते है, अतःआपका अहिंसामय उपदेश अच्छा नहीं लगता । वे लोग कहते है कि, जिस कार्य को सदियों से करते
आये है, उस कार्य को छोडना नहीं चाहिए | एक बार सब सरदार-उमराव इकट्ठे होकर मेरे को कहने लगे, बापका सच्चा बच्चा वो है,
जो अपनी परंपरा से आये मार्ग को छोडता नहीं उनहोंने एक उदाहरण दिया । सुनकर उसका विरूद्ध दृष्टांत मैने भी दिया । किन्तु वो सब रसनेन्द्रियके लालचू थे । इसलिये छोड
नहीं सकते । SPSGARDSPIRSMSSSSSSSSSSSSSSCIOS,CGSORDSMISSIOSSESARIDGES
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