Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
MaxBalancelarDeKOM,Belandas♡KOMBON
-: सुवाओं को प्रतिबोध :
हीरसूरिजी महाराजनें अकबर को जैसा प्रतिबोध दिया, ऐसे राजामहाराजा और सुबाओं को भी बोध दिया था । क्योंकि बादशाह को सरलता से समजा सकते है । मगर सुबा तो सत्ता के मद से मस्त होते थे और अहमेंन्द्र थे । और उस समय अराजकता भी बहुत चलती थी । इसलिये जुल्मी भी वे बहुत थे ।
वि.सं. १६३० सालमें पाटण के सुबेदार कलाखा बहुत जुल्मी थे । उसका नाम सुनके प्रजा कंपित हो जाती थी । ऐसे जीव को भी उपदेश के जल से शान्त बनाकर, जिस बंदी को प्राणदंड की सजा दी थी उसको मुक्त कराया और सारे नगर में एक मास की अमारि की उद्घोषणा कराई।
सूरिजी वापिस गुजरात आ रहे थे तब मेडता के सुबा खानखाना ने मुलाकात की । वो मुसलमान थे, इसलिये उन्होंने मूर्तिपूजा के विषय में प्रश्न पूछे, सुरिजीने ऐसा समाधान दिया कि, उसने खुश होकर सूरिजी को बहुत मूल्यवान पदार्थो की भेट दी । सूरिजीने वो नहीं ग्रहण करके अपना धर्माचार का ब्यान दिया । जिससे वो सूरिजी पर आफ्रीन हो गये।
सिरोहीके आंगणमें सूरिजी पधारे । तब वहां का राजा महाराव सुरतान पर ऐसा उपदेश का प्रभाव डाला कि, प्रजा पर जुल्मी कर लेते थे वो बंद करा दिया । और बिना कारण एकसो श्रावकों को जेलमें डाला गया था । जिससे सारे संधमें हाहाकार की करूण हवा प्रसर गई थी । सूरिजीनें कोई कारण बताकर सब मुनिवरों के साथ आयंबील कर महाराजासे भेट की । और ऐसा प्रभावोत्पादक बोध का धोध बहाया कि राजानें उसी दिन शामको सबको मुक्त कर दिया । SARTHRSSROSMETROSHESHABSITESRIDGEBSIRDSHISEKOSHESAIDS,99
24
For Private and Personal Use Only