Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
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Kaselas,Selas,bemas,cekan.sekas,*as,cenas सूरिजीनें कहा, भाग्यशाली, हम तो चींटीयौसे लेकर कुंजर तक दया करनेवाले है । याने सारे जगत के प्राणियों के साथ मैत्रीभाव करनेवाले है |
और समस्त जीव लोक सुख-शान्ति आबादी के साथ धर्ममय जीवन व्यतीत कर कल्याणपथ के यात्री बनें ऐसी प्रार्थना करते है।
ऐसी बात चल रही थी इसमें इधर के सुप्रसिद्ध कुंवरजी भाई श्रावक वंदनार्थ आये | उसने जैन साधु कैसी मर्यादा से पवित्र जीवन बिताते है । उनका परिचय दिया । यह सुनकर हाकेम बडा खुश हो गया और उपाश्रय के बाहर आकर दीन दुःखी को दान दिया ।
इतनेमें एक पुलिशपार्टी वहाँ आई । और समाधान सुनकर वे कुंवरजी श्रावक के साथ चर्चा करने लगे । इसमें कुछ मामला तंग हो गया । पार्टीने कोटवालके पास जाकर उनका Vill Power चढाया । कोटवालने हीरसूरिको कैद करने के लिए हुकम के साथ पुनः पार्टी भेज दी । मगर पहिले मालुम हो जानेसे वहाँ से हीरसूरिजी नग्न देहे भगे । और वहाँ देवजी लौंकाने आश्रयदान दिया । कितने दिनों बाद हल-चल मिट गई और हीरसूरि महाराज शान्ति से गाँव-नगर विहार करने लगे ।
-: मुगलबादशाह का आमन्त्रण :
'अकबर की सभा पांच विभागों मे विभक्त थी । इसमें पहिले लाइनमें १६ वे नंबर में हरजी सूर है । ऐसी सूची आइने अकबरी नामक ग्रंथमें है । वो ही अपने चरित्र नायक आचार्य विजय हीरसूरीश्वरजी महाराज ।
कौनसे निमित्तसे आचार्यदेव की अकबर के साथ मुलाकात हुई इस प्रसङग को जानने के लिये वाचक को भी बडी तमन्ना हो गई होगी । अत:अब जानकारी दे देता हूँ | SHEBSITESHESSROOTBSPRSSHESARRESHESSOROSCSSROSHSSPRESHESSIRD
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