Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
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सुखपूर्वक बादशाह के पास पधारें। आपको बडा लाभ मिलेगा और शासन प्रभावनामें अभिवृद्धि होगी। इतना कहकर देवी अंतर्धान हो गइ । इस सुख समाचार सुनकर सूरिजी के मुख पर आनन्द के चार चाँद उदित हो गये ।
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वहीं से सूरि भगवंत अहमदाबाद पधारे । संघ द्वारा कि हुई भव्यस्वागत यात्रा में सुबा शाहबख भी आये थे । उसने गुरू चरण में अपना शिर रखकर पूर्व किये हुए अपराध की क्षमा याचना मांगी । और बादशाह के भावपूर्ण निमंत्रण को और किसी भी वाहन आदि की जरूरत हो इत्यादि की विनंती की । सूरिजीने अपने आचारका वर्णन किया । इधर से पत्र लेकर आये हुये दो सेवक भी सूरिजी के साथ चलने लगे ।
सूरि भगवंत पाटण पधारे, तब विजयसेनसूरि, उपा-विमलहर्षगणि संघ के साथ सामैया में पधारे थे । विजयसेनसूरि को गुजरात में रखकर सूरिजी आगे विहार करनें लगे । उपाध्याय विमल हर्ष गणि ३५ मुनिवर के साथ उग्र विहार करते हुए दिल्ली पहिले पधार गये ।
अबुलफजल द्वारा अकबर बादशाह के साथ उपाध्याय का मिलन हुआ । आप साधु किस कारण बने ? आपका महान तीर्थ कौनसा है ? इत्यादि बहुत प्रश्नोंको बादशाहने पूछे । उपाध्यायने ऐसी तर्क- दृष्टांत के साथ समजौति कि, बादशाह सुनकर आनंद विभोर बन गये । और नमन करके हररोज धर्मोपदेश देने जरूर पधारना ऐसी प्रार्थना भी की ।
पू. उपाध्यायने सूरिवर के पास श्रावकों को भेजकर विनंती की, कि बादशाह आपके दर्शन और धर्मोपदेश सुनने को चातक पंखी की तरह आतुर है । दुसरा कोई कार्य नहीं है । आप शान्ति से पधारना और स्वास्थ्य को संभालना ।
पाटण से विहार कर सूरिजी आबू पधारे । तब बीच जंगल में सहस्रार्जुन नामक भीलों के सरदार को उपदेश देकर मांस नहीं खाने का
अभिग्रह कराया ।
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