Book Title: Jina Pooja Paddhati Author(s): Kalyanvijay Gani Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor View full book textPage 8
________________ [७] घृतनो दीपक थतो होई देवनी आगल पण घृतनो दीपक. प्रगटाव्यो. आम भक्तनी भावनामांथी प्रथम 'पंचोपचारी पूजा' प्रचलित थई. गरीब अने मध्यम वर्गमां ते काले एटली ज सात्विक चीजो हती जे तेणे पोताना इष्टदेवने अर्पवार्नु चालु कयु, पण देव के धर्म कई गरीब के मध्यमवर्गना हृदयो सुधी ज पोतानी स्थिति मर्यादित राखतो नथी, ते श्रीमन्तो, राजाओ अने देवदानवो सुधी पहोंचे छ. जिनभक्तोमा जेम मध्यम वर्गनी लाखोनी अने क्रोडोनी संख्या हती तेम हजारो अने लाखोनी संख्या श्रीमंतोनी पण हती. तेवी स्थितिवाला भक्त गृहस्थोनी भावना थई यद्यपि भगवान् चढावेल पुष्पादि भोमसामग्रीनो उपभोग करता नथी छतां चढावनारने तेना भावोल्लासने अनुसारे मानसिक संतुष्टि थाय छे तो अमो ताजां फलो, मधुर पक्कानो जाए तेम आराध्य देवने चढावीये तो विशेष लाभ थशे ज एम विचारी तेमणे मूर्तिनी आगळ ताजां पाकां मीठां फलो अने मधुर पक्कानो पण चढावा चालु कर्या, अने खाद्य पदार्थों ढोवानुं थयुं एटले आचमनार्थ जलन तो स्मरण थाय ज! छेल्लुं स्वच्छ जल भरीने शीतल जलपात्र पण आगल मूकवानुं चालु कयु. ए प्रकारे धीरे धीरे "पंचोपचारी" अने 'अष्टोपचारी पूजाओ प्रचलित थई. आम द्रव्यपूजानो प्रचार गृहस्थ जिनभक्तोए कर्यो छतां आ वस्तु सार्वत्रिक प्रचार पामी चूकी, मूर्तिना दर्शन, पूजनथी गृहस्थ धर्मियोनी धार्मिक श्रद्धानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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