Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 29
________________ तेवां स्थानोमां उतरवु पसंद नहोता करता तेओ गृहस्थोना खाली मकानोमां अथवा तेवा प्रकारना निर्दोष स्थानोमां उतरता हता, पण आवा वसतिवासी सुविहितोनी संख्या घणी ज थोडी रहेती, मुख्य भाग चैत्योमा रहेतो हतो अने ते चैत्यवासी तरीके ओळखातो हतो. प्रारंभमां ए चैत्यवासीओ महाविद्वान् तेमज क्रियापात्र साधुओज हता पण धीरे धीरे गृहस्थोना प्रतिवन्ध अने चैत्योनी व्यवस्थामां पडतां केटलीक पेढीओने अंते वधारे पडता शिथिलाचारी थई गया हता. विक्रमना चोथा सैकाना प्रारंभथी एमनामां शैथिल्य पेसवा मांडयुं हतुं अने पांचमा सैकाना उतार सुधी एटला बधा शिथिलाचारमा गबडी पड्या हता के सुविहित साधुश्रोने एमनी साथेनो संबंध तोडी नाखवो पडयो हतो. ए बधु थवा छतांये संघमां वर्चस्व चैत्यवासिओगें हतुं, संख्याबल पण तेमनु हतुं अने विद्वत्ता पण तेमनी पासे हती. आ कारणथी विक्रमना छठा सैकाथी दशमा सैकाना अंत सुर्धाना ५१० वर्षोमां एकछत्र साम्राज्य रद्यु, आ पंचशती दर्मियान सुविहित श्रमणोनी परम्पराओ तो चालती ज हती, तेमनामां सारा सारा ग्रन्थकारो पण थता ज रह्या छे, छतांये ए कहेवु पडे छ के चैत्यवासियोनो खुल्लो विरोध करवानुं जोखम उपाडवाने कोई तैयार न हतुं, पण चैत्यवासियो पोतानी करणीथी ज धीरे धीरे नबला पडवा मांडया हता. दशमा सैका सुधीमां तेओ पर्याप्त नबला पडी गया हता, विद्वानोनी संख्या घटी हती, साथे ज संयम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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