Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 38
________________ [ ३७ ] पूर्वक वांच्यु छ अने निश्चय कर्यों छे के ए प्रकरण उमास्वातिजीनी रचना नथी पण कोई चैत्यवासी विद्वान्नो संदर्भ छे. आ प्रकरणोक्त एकवीश प्रकारी पूजाना निर्देशो *विंशतिस्थानक विचारामृत संग्रह' तथा 'श्राद्धविधिकौमुदीमा मले छे के जे ग्रन्थोनी रचना अनुक्रमे वि० संवत् १५०२ तथा १५०६ ना वर्षमा थई छे, ए पहेलांना कोई ग्रन्थमां पूजाप्रकरणनो उल्लेख अमारा जोवामां आव्यो नथी. आ पूजाप्रकरणमा जणावेल २१ प्रकारी पूजानी योजना नीचे प्रमाणे छ"स्नानं विलेपनविभूषणपुष्पवासधूपप्रदीपफलतन्दुलपत्रपूगैः। नैवेद्यारिवसनं चर्मगतपत्र-वादित्रगीतनटनस्तुतिकोशवृद्ध्या ।। इत्येकविंशतिविधा जिनराजपूजा, ख्याता सुरासुरगणेन कृता सदैव । खण्डीकृता कुमतिभिः कलिकालयोगा द्ययात्प्रियं तदिह भाववशेन योज्यम् ॥" अर्थात्-स्नान १, विलेपन २, आभरण ३, पुष्प ४, वास ५, धूप ६, दीप ७, फल ८, अक्षत ९, पान १०, सोपारी ११, नैवेद्य १२, जल १३, वस्त्र १४, चमर १५, छत्र १६, वादित्र १७, गीत १८, नाटक १९, स्तुति २०, कोशवृद्धि २१ आप्रमाणे एकाश प्रकारी जिनपूजा प्रसिद्ध छ अने देव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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