Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 56
________________ विचार करतां आपणी वर्तमान पूजापद्धति सुंदर प्राचीन प्रतिमाओने क्यांसुधी चैत्यालयोमा रहेवा देशे ए कहेवू मुश्केल छे. मूर्तिपूजानिमित्तक सामान्य हिंसाने अंगे पूर्वे पण कई वार विशेष उठ्या हता के जेनो श्री हरिभद्रसूरि जेवा श्रुतघर आचार्योने उत्तर आपको पडयो हतो छतां ते विरोधोथी मूर्तिपूजाने कई पण नुकशान थयुं न हतुं. तेरमा सैकामां अंचलगच्छीय आचार्योए दीपक पूजानो विरोध कर्यों पण परिणाम शून्यमांज आव्युं, परन्तु सर्व प्रतिमाओना नित्यस्नान-विलेपननी पद्धति दाखल थया पछी ए अंगे थती अति प्रवृत्तिओथी लोकमानसमांजे विपरीत भावनाओए प्रवेश कयों हतो तेनो लोकाशाहना विरोध पछी स्फोट थयो. लोकाशाह कोई प्रसिद्ध वक्ता के नामांकित विद्वान तो हता नहिं के जेमनी वाणीथी लुम्ब बनीने हजारो माणसो तेमना अनुयायियो अनीने परम्परागत सरणिनो त्याग करीना कट्टर विरोधी बनी जाय, पण साधारण जनतानो घणो भाग आ धनवानोनी अति प्रतिओथी उभगी गयो हतो अने संयोगवश तेवाज समयमा लोकाशाहे साहस करी तेवा लोकोर्नु नेतृत्व स्वीकारीने मूर्तिपूजा सामे माथु उंचक्थु, तेमने टपोटप ज्यां त्यां सहायको मल्या अने तेमना प्रकारे देशव्यापी रूप धारण कर्यु, अने मूर्तिपूजाने पारावार हानि पहोंचाडी. आजे अमूर्तिपूजक जनोनी संख्या लाखोथी गणाय छे. अमारा नम्र मत प्रमाणे बारमा सकामां नित्यस्नान-विलेपनर्नु जे आन्दोलन ज्ञाधुं हतुं तेनुं सोथी अनिष्ट परिणाम छ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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