Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 53
________________ [५२] सिवाय घणीखरी पूजाओ भावहीन अने कवित्वहीन छे. ए सिवाय आजकालनी केटलीक पूजाओमां तो पूजावस्तुत्व ज नथी के जेनी एना रचयिताओने पण खबर नथी. परिवर्तननां परिणामो आपणे जोयुं के हजारो वर्ष पहेलांनी "जिनपूजापद्धति" घणी सुगम अने सुखसाध्य हती. ज्यारथी सर्वोपचारी पूजानो अधिक प्रचार थयो त्यारथी कंईक श्रमसाध्य अने व्ययसाध्य जरूर थई तो पण ते पर्वगत होवाथी विशेष परिणामजनक न थई, परंतु तेरमा अने चौदमा सैकाथी ज्यारे नित्यस्नानविलेपनना रूपमां ते प्रचलित थई त्यारथी सोलमी सदी सुधीमा एणे अनेक अनिष्ट परिणामो उपजाव्यां छ जे पैकीनां थोडांकनुं सूचन करीने अम्हारा आ लेखने समाप्त करीशुं. १-पूर्व समयमां ज्यारे ज्यारे स्नपननो प्रसंग आवतो त्यारे एनी खास तैयारीओ थती अने अभिषेक योग्य जलमां विविध सुगंध पदार्थो मेलबी सुगंधी बनाववामां आवतुं, नित्यस्नानना जलमां एवं कंई थतुं नथी. २-पर्वगत स्नानसमयमा प्रतिमाजी उपर जे चंदनादिनां विलेपनो थतां तेनी सुगंधीथी मंदिर ज नहि, आसपासनो प्रदेश पण महकी उठतो हतो. हवे नित्यस्नानविलेपनोमा ए पालवे तेम नथी, सादु विलेपन पण मोंधू पडतां नवांग तिलकोमा समावq पडयुं तो तेवां सुगंधी विलेपनो तो पालवे ज क्याथी ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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