Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 36
________________ [ ३५ ] नवी समस्याओ (१) गृहदेवालयोनी उठांतरी नित्य स्नान-विलेपन प्रथम सर्वोपचारी पूजामां थतुं तेम जो मूलनायक अथवा अमुक एक प्रतिमा पूरतां ज रह्यां होत तो नवी समस्याओ ऊभी न थात पण प्रचार एटले एक महानदीनो प्रवाह, एनो एक ज मार्ग रहेतो नथी, प्रचारे बधुं पोतानी अंदर समावी दीधुं. मूलनायकनुं नित्य स्नान-विलेपन अने बीजी प्रतिमाओने नहिं ? मूलनायक अधिक अने बीजा भगवान् ओछा ? आ युक्तिवादे सर्व प्रतिमाओने नित्यस्नान-विलेपनना लपेटामां लोधी अने सर्वत्र सर्व प्रतिमाओगें स्नान अने विलेपन नित्य थवा मांड्या. उपदेशकोने पोताना उपदेशनी सफलता थतां आनंद थयो. श्रीमन्त श्राद्धोने जिन भक्तिमां तन, धन खर्चवानो मार्ग जडयो पण "महाजनो येन गतः स पन्थाः " आ कथनानुसार देखादेखी-भावथी के व्यवहारथी जे पोतानी भक्तिनिभावता हता तेमने माटे आ सर्वोपचारी भक्तिनो मार्ग भारे पडया लाग्यो.नित्य प्रतिमाओ न्हवरावी, नित्य चंदन घसवां, नित्य प्रतिमाना परिकरोमां पाणी के चंदनादि न रहे एनी चिन्ता-आ बधुं तेमने माटे चिन्तानो विषय थई पडयु. परिगाम ए आव्युं के धीरे धीरे मंगलचैत्यो (घरदेरासरो) उठा लाग्यां, ज्यां प्रतिगृह मंगलचैत्य हतुं ते पाटण जेवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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