Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ ४.] अमारा जोवामां के सांभळवामां आवी नथी. अमारी दृष्टिए जूनामां जूनी लघुस्नात्रविधि देवपाल कविकृत जणाई छ के जे भाषानी दृष्टिए विचारतां पंदरमा सफा पहेलांनी जणाती नथी. ए पछी अढारमा अने ओगगीसमा सफाआमां बनेली केटलीक -लघुस्नात्रविधिओ छे पण कोई प्राचीन उपलब्ध थती नथी. अष्टप्रकारीमा जलस्नाननो वधारो___ सोलमा सैका सुधीना समयमां नित्यस्नान मात्र वध्यु हतुं पण तेनी ते वखते पूजामां गणना न हती, अष्टप्रकारामां आठ द्रव्यो ते ज हतां जे अष्टोपचारीमा हतां. आ वातनो स्फोट 'आचारोपदेश'ना नीचेना शब्दोथी थाय छ "भृगारानीतनीरेण, संस्नाप्याङ्गं जिनेशितुः ।। "रूक्षीकृत्य सुवस्त्रेण, पूजां कुर्यात्तव्येऽष्टधाम् ॥" अर्थात्-नालचावाळा कलशमां भरेल. जलवडे जिनेश्वरना अंगर्नु प्रक्षालन करी, शुद्ध वस्त्रे अंगने लूछीने ते पछी अष्टप्रकारी पूजा करे. आ उपरथी स्पष्ट थाय छे के 'आचारोपदेश'ना निर्माणकाल सुधी स्नान अने जलपात्र बंने हतां केम के त्यां सुधी स्नाननी पूजामांगणना न हती. सोलमा सैकाना प्रथम चरणमां बनेल 'श्राद्धविधिकौमुदी'मां पण जलस्नान अने जलपात्र बंने छे छतां जलस्नानने पूजामां गण्डे नथी पण तेमां जलपात्र आगल मूकवानुं विधान करेल छ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58