Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 46
________________ [४५ आभरणविधि अने चक्षुर्युगल__ मूलमां जलस्नान पर्वगत हतुं छतां धीरे धीरे नित्य कर्तव्य रूपे थई पडयुं छे, ए ज प्रमाणे आमरणविधि पण मूल मां पर्वगत सर्वोपचारी पूजानी साथे ज संबंध धरावती हती पण नित्य स्नाननी सार्थ आभरणविधिको प्रचार पण अतिशय वध्यो. आज जे देहरानी आर्थिक स्थिति सद्धर होय छे ते देहरानी प्रत्येक मूर्तिने माटे चांदीनी आंगियो तो होवी ज जोईये अने मूलनायक त्रिगडाने तो डब्बल ! एक हमेशांनी अने एक वार-तहेवारे पहरावानी. भले आ आं ओना घसाराथी प्रतिमाओ घसाय, खंडित थाय, घरफाडु लूंटारा. ओने हाथे चढे अने मुसमां गले पण आंगी तो हमेशां जोईये ज. अने प्रतिमाओने चढावातां नेत्रो ! केटलां अस्वाभाविक अने अरमणीय लागे छ ? आपणामां प्रतिमाओने नेत्र चोटाडवानुं प्रमाण आज सुधी अमने कोई शास्त्रमा मल्युं नथी, प्रतिमाना निर्माण समयमां जेवू रूप अने अंगोपांगोनुं निर्माण कराव होय तेवू थई शक छे, अने ते प्रतिमानुं जन्मजात रूप गणाय. पाछलथी कुदरती नेत्रो जेकां नेत्रो तो मूर्तिने बनेलो होय ज छे ते उपर आवां सोना-चांदी अने काचनां के कोई नंग जडेलां नेत्रो चोटाडयां ते घणांज कृत्रिम लागे छ अने सोना-चांदीना लोभथी घणे स्थले चोरो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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