Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 42
________________ [४१ ] ए वस्तुने सिद्ध करनारां अनेक शास्त्रीय प्रमाणो छ. अष्टोपचारी पूजामा पूर्व स्नान-प्रक्षालन न हतुं, ए तो पूर्वे कहेवाई ज गयुं छे पण बीजा पण अनेक उल्लेखो शास्त्रोमा मले छे के जे पूर्व समयमां नित्य स्नानोनो अभाव सिद्ध करे छे. आचार्यश्री पादलिप्तमूरिजी पोतानी 'प्रतिष्ठापद्धति'मां लखे छे "ततो मासं प्रति ( एकमिति ) द्वादश स्नपनानि कृत्वा पूर्ण संवत्सरे अष्टाहि पूर्विकां विशेषपूजां विधाय दीर्घायुग्रन्थि निबन्धयेदिति ।" ___ अर्थात्-'प्रतिमास एक एवां बार स्नपनो करीने वर्ष पूरूं थया पछी आठ दिवसना उत्सवपूर्वक विशेषपूजा करवी अने दीर्घायुष्य निमित्ते गांठ बांधवी.' आचार्यप्रवर श्रीहरिभद्रसूरिजी कहे छ के "अष्टौ दिवसान् यावत्पूजाऽविच्छेदतोऽस्य कर्तव्या दानं च यथाविभवं दातव्यं सर्वसचेभ्यः॥" अर्थात्-'प्रतिमा प्रतिष्ठित थया पछी एनी आठ दिवस पर्यन्त अविच्छिन्नपणे पूजा करवी अने आर्थिक स्थिति मुजब सर्व प्राणियोने दान आप. पादलिप्तमूरिजीना उक्त उल्लेखनो भाव ए छे के-प्रतिष्ठा थया पछी दरमहिने प्रतिष्ठातिथिना दिवसे प्रतिष्ठित प्रतिमार्नु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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