Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 41
________________ [४०] अर्थात् पंचामृत स्नान तथा गोळ सहित घीनो दीवो शान्तिक कार्य माटे होय छे अने आग्निमां लवणनिक्षेप शांति तथा तुष्टिने माटे वखणाय छ. आम पंचामृत स्नानो अने लवणनिक्षेपादि क्रियाओ नैमित्तिक कर्मोमां परिगणित थई. नवांगपूजामां पण थोडोक मतभेद "कर्पूरकेसरोन्मिश्र-श्रीखंडेन ततोऽर्चनाम् । कुर्वन् जिनेशितुर्भाले, कुर्वीत तिलकं धुरि ॥ नवांगतिलको कार्या, ततः पूजा जगत्पतेः । अंहि-त्रानु-करांशेषु, शीर्षे श्रीखंडयोगतः ।।" अर्थात्-' कपूर केसर चंदनवडे ते पछी पूजा करतां सर्वप्रथम ललाटमा तिलक करे, पछी नवांग तिलकोवडे जिनेश्वरनी पूजा करवी, चरण, जानु. हाथ, खंध अने मस्तक आ नव अंगोमां केसरमिश्र चंदनवडे तिलको करीने नवांगपूजा करवी,' पूर्वोक्त नांगोमां ललाटने गण्युं छे अने त्यां नवम तिलक आवे छे, ज्यारे उपरना विधानमा नवमुं अंग शीर्ष गणीने नवम तिलक त्यां करवानुं विधान छे अने ललाटमा प्रथम वधारे खाते तिलक करवानुं विधान करेल छे. ज्यां नवी व्यवस्था थाय त्यां आवा प्रकारना मतभेदो स्वाभाविक ज होय छे. पूर्वेजिनपूजामा नित्यस्नान न होवानां प्रमाणो पर्षे जिनप्रतिमानुं नियस्नान-प्रक्षालन न हतुं, Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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