Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 37
________________ [३६] शहेरमा आजे तेमनी संख्या ३० नी आसपास आने ऊभी छे. आ नवी पूजापद्धतिनुं पहेलं परिणाम ! (२) भक्तिचैत्योमां पगारदार गोठियो हवे भक्तिचैत्यो(नगरचत्यो) नी परिस्थिति तरफ वलीए. नगरचैत्योमा पहेला मात्र बाह्य सफाई पूरती ज पगारदार माणसनी जरुर रहेती हती, पण नित्यस्नान-विलेपन फरजि. यात थवाथी प्रतिभक्तिचैत्य पाछळ १-१ अने बावन जिनालयो माटे ३-३ पगारदार गोठीओ राखवानी आवश्यकता ऊभी थई अने खर्च वध्यो अने देवद्रव्यनी वृद्धिना नवा मार्गो शोधवानो समय आव्यो. इंद्रमालोद्घाटन आदिनी उछामणीओ बोलावानो प्रचार थयो अने जेम तेम खर्चा निभवा लाग्या. (३) देवद्रव्यनी वृद्धि निमित्ते एक नवं निर्माण देहरासरोनी आर्थिक स्थिति सुधारवा माटे एकवीश प्रकारी पूजानी योजना करी आसरे २५ संस्कृत पद्योनी रचना करीन तेने 'पूजाप्रकरण' नाम आपी प्रसिद्ध संस्कृत ग्रन्थकार श्री उमास्वाति वाचकने नामे चढावी दीधुं, पण आ वस्तु सर्वमान्य थई शकी नहिं, कोईए तेने उमास्वातिनी कृति तरीके मानीने एकवीश प्रकारी पूजानो उपदेश कर्यों तो काईए एने कल्पित जणावीने एकवीश प्रकारांना विरोधमां प्रचार कर्यो. अमोए पण उपर सूचित पूजाप्रकरण ध्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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