Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ [ २६ ] बेसाडीएटले प्रतिष्ठा थई गई. न नित्यस्नान विलेपननी चिन्ता हती अने न पूजा करनार पगारदार गोठियोनी आवश्यकता. ___भरत चक्रवर्तीनी इच्छा थई अने अष्टापद गिरि उपर भगवान् ऋषभदेवना अग्निसंस्कार स्थान पर 'सिंहनिषद्या' चैत्य बनावी दीधुं, अने ऋषभादि तीर्थकरोनी मूर्तिओ प्रतिष्ठित करीने चिरस्थायी स्मारक बनावी पोतार्नु कतैव्य पूरु कयु. न तेनी पूजा व्यवस्था माटे कोई ग्राम ग्रास दीधो, न पूजारियोनो बंदोबस्त कर्यो. भरतना वंशज सगर चक्रवर्तीना पुत्रोए पोताना पूर्वजोनी कृतिने चिरस्थायी अने सुरक्षित बनाववा माटे तेना मार्गो दुर्गम बनाव्या अने फरती खाई खोदीने पर्वतने दुरारोह बनाव्यो पण तेना निर्वाह माटे बीजी कोई चिन्ता न करी केम के तेवी चिन्तार्नु कोई कारण ज न हतुं. कोई देव विद्याधर पहोंची जतो अने इच्छा थती तो यथेच्छ भक्ति करी लेतो, नहिं तो दर्शन तो करतो ज अने भरतनी पितृभक्ति तथा जिनम आपणा शास्त्रोना लेखानुसार नन्दीश्वर, रुचक, कुंडलादि द्वपिोमां शाश्वत चैत्यो अने प्रतिमाओगें अस्तित्व छ, अष्टातिक पर्वोना दिवसोमां के जिनकल्याणकादिना प्रसंगोमां देवासुरो के सिद्ध विद्याधरो त्यां जई उत्सवो मनावे छे, पण सदाकाल त्यां कोण पूजा करे छे एनो खुलासो शास्त्रथी मळतो नथी. देवविमानो अने भवनपतियोना भवनोमांजिन Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58