Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 33
________________ [३२] घणाक सुविहितो पण नित्य स्नाननो उपदेश देवालाग्या अने धीरे धीरे पण नित्य स्नाननी प्रवृत्तिओवधवा मांडी. नित्य स्नाननां आम आंदोलनो बारमी शताब्दीना प्रारंभथी ज नित्य स्नाननु आन्दोलन प्रतिदिन वधतुं तो हतुं ज अने बारमा शतकमां एणे जोर पकडा. आचार्य श्री हेमचंद्र जेवा समर्थ उपदेशकोनो तेने टेको मल्यो अने एम कहीये तो पण अनुचित नथी के श्री हेमचंद्राचार्य जेवाओनी आगेवानीथी ज ए अधिक व्यापक बन्युं हतुं. पाटणना समृद्ध गृहस्थो अने सत्ताधारीओनो तेने साथ हतो. आचार्यश्री हेमचंद्रे योगशास्त्रनी मूल कारिकाओ तो प्रचलित प्रणालिकाने अनुसारे ज नीचे प्रमाणे बनावी "शुचिः पुष्पामिष्टस्तोत्रै-दैवमभ्यय॑ वेश्मनि । प्रत्याख्यानं यथाशक्ति, कृत्वा देवगृहं ब्रजेत् ॥ प्रविश्य विधिना तत्र, त्रिः प्रदक्षिणयेज्जिनम् । पुष्पादिभिस्तमभ्यर्च्य, स्तवनैरुत्तमैः स्तुयात् ॥" अर्थात्-घरदेरासरमां पवित्र थई पुष्प, नैवैद्य, स्तोत्रोवडे जिनने पूजीने यथाशक्ति पञ्चक्खाण करे अन पछी नगरचैत्यमां जाय. त्यां विधिथो प्रवेश करी जिनने त्रण प्रदक्षिणा करे अने पुष्पादिवडे पूजा करीने उत्तम स्तोत्रोवडे स्तवना करे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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