Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 31
________________ [ ३० ] वादिवेताल शान्तिसूरिजीनी 'अईदभिषेकविधि' अने वायडीय श्रीजीवदेवसूरिजीनी 'जिनस्नात्रविधि' विगेरे प्रतिष्ठा तथा जिनस्नाननी मौलिक विधिओ एज चैत्यवासप्रधान समयमां चैत्यवासियोना हाथे रचायेली छे के जे सर्वमान्य कृतिओ छे अने पाछलना समयमां बनेल ए विषयना ग्रंथकारोए ए ग्रन्थोनुं उपजीवन नथी कर्यु पण ए ग्रंथोथी यथेच्छ मार्गदर्शन मेलव्युं छे. आम एक प्रकारे तो ए समय घणो उपकारक हतो, विद्वत्तानो हतो पण श्रमण धर्मनो मार्ग आमां प्रतिदिन अव्यवस्थित थतो गयो, परिस्थिति वधु बगडतीज चाली एटले समाजनी भावना पण बदलवा मांडी, पोताना मानेला गुरुओ करतां अप्रतिबद्धविहारी सुविहित साधुओनी तरफ समाज खेचावा लाग्यो, ए वस्तु गाम गाम बद्धमूल चैत्यवासिओने माटे ईर्षाजनक हती, तेओ सुविहितोनी साथे अथडामणमां उतरवा सुधीनी हदे पण पहोंच्या छतां गृहस्थ वर्ग उपरनो प्रभाव मंद पडतां तेमनुं वजन घणुं हलकुं पडी गयुं हतुं अने अग्यारमी सदीना अन्तिम भागथी तेमनी सामे सुविहितो खुल्ला पडकार करवा मांड्या, साधुओना ए विवादोमां गृहस्थाने विभक्त थवुं पड्युं, परिणामे संघनुं बंधारण तूटीने नवा नवा गच्छो निकल्या अने नवा नवा संघो बन्या. बारमा सैकाना मध्यभागथी तेरमाना मध्यभाग सुधीना एक सो वर्षो कोई ने कोई वातना विरोधने लईने पौर्णमिक, आंचलिक, साधुपौर्णमिक, खरतर, आगमिकोए पोतपोतानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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