Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 26
________________ [२५] मनुष्यनी असहिष्णुता छे. जो मनुष्यमां सहिष्णुता केलवाई जाय अने बीजानी कृतिने खोटी कहेवानी आदत छोडी दे तो पूजाने अंगेना ज नहिं घणी बाबतोना विरोधो स्वयं मटी जाय. मूर्तिपूजाने विषे पूर्वकालमा विरोध केम न थयो ? आपणामां जिनपूजा परापूर्वथी चाली आवे छे छतां आजथी पंदरसो वर्ष पहेला एमां थती हिंसानो कोईए विरोध कर्यों न हतो, एर्नु एक ज कारण हतुं के ते समयनी पूजापद्धति घणी सादी अने निराडंबर हती. देहरां बनतां, प्रतिमाओ बनती पण केटली सरलतापूर्वक अने अल्प व्ययमां? कोई गुफाने तोडी-फोडीने मंदिर बनावी दीधुं अने पहाडमाथी ज मूर्ति खोदी काढी ने बस मूर्ति अने मंदिर बने तैयार. गुफा श्रमणोने माटे उपाश्रयनुं काम आपती अने मूर्ति एमना वन्दनीय देव बनी जती. तीर्थंकरोनां स्मारक समां आवां मंदिरो केटलां सुखसाध्य अने समाधिजनक होतां कोई भाविक गृहधर्मी आवी जतो अने पुष्पमुष्ठि चढावी जतो अथवा धूप बत्ती उखेवी जतो. कदाच कोई वणिक न जतुं तोय एने अंगे कोईने चिन्ता नहि. ए जवात चैत्यो-प्रासादोने अंगेपण हती. कोई धनसंपन्ननी इच्छा थई अने कोई उपवनमां नदी तट उपर के कोई गिरिशिखर उपर सुन्दर चैत्य बनावी दीधुं. सुलाक्षणिक जिनमूर्ति बनावरावी, कोई ऋषि-मुनिना हाथे वासक्षेप करावी Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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