Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
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प्रथमा 'समंतभद्रा' पूजा बंधकयोगी अविरति सम्यग् - दृष्टिने उपकारक होय छे, बीजी 'सर्वमंगल' पौषध, प्रतिक्रमणादि उत्तर गुणधारी सामान्य श्रावकने करवा योग्य होय छे ज्यारे त्रीजी 'सर्वसिद्धिफला' पूजा तत्काल अबन्धक योगवडे परम श्रावकपणाने पामेल गृहस्थ धर्मीने माटे योग्य गणाय छे. आ पूजानो अधिकारी परमश्रावक कायिकादि योगोनी विशुद्धि अने मनोयोगनी समाधिवडे आ पूजा करी शके छे अने साधुयोग्य गुण तथा क्रियानुं फल निपजावे छे. पूजामां हिंसानी शंका
पूयाए कायवहो, परिकुट्ठो सो य णेव पुजाणं । उवयारिणित्ति तो सा, परिसुद्धा कहणु होइ ति ॥ भण्णइ जिणपूयाए, कायवहो जति वि होइउ कहि चि । तह वितई परिसुद्धा, गिहीण कूवाहरणजोगा || असदारम्भपवत्ता, जं च गिही तेण तेसि विनेया । तन्निव्वित्तिफलच्चिय, एसा परिभावणीयामिणं ॥ उवगाराभावमि वि, पुज्जाणं पूयगस्स उवगारो । मंतादिसरण - जलणाइ-सेवणे जह तहेहं पि ॥ देहादिणिमित्तं पि हु, जे कायवहमि तह पयङ्कंति । जिणपूया काय वहमि, तसिमपवत्तणं मोहो ||
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अर्थात् - पूजामां पृथिवीकाय आदिनी हिंसा थाय छे अने
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