Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ [ १८ ] आगमकथित छे. जिनप्रतिमानी चार अथवा बे निक्षेपके पण भावयुक्त पूजा करवी जोईये. पूजाना विकासकालमा उत्पन्न थयेल पूजाना अन्य भेदो अने तेना अधिकारीओ"पूआ देवस्स दुहा, विनया दव-भावभेएणं । इयरेयरजुत्ता वि हु, तत्तेण पहाण-गुण-भावा ।। पढमा गिहिणो सा वि हु, तहा तहा भावभेयओ तिविहा । काय-वय-मणविसुद्धि-संभूओगरणपरिभेया॥ सव्वगुणाहिगविसया, नियमुत्तमवत्थुदाणपरिओ सा । कायकिरियप्पहाणा, समंतभद्दा पढमपूआ ।। बीया उ सव्वमंगल-नामा वायकिरियापहाणे सा। पुव्वुत्तविसयवत्थुसु, ओचित्ताणयण भेएणं ।। तइया परतत्तगया, सव्वुत्तमवत्थुमाणसनिओगा । सुद्धमणजोगसारा, विनया सबसिद्धिफला ॥ पढमा बंधगजोगस्स, सम्मदिद्विस्स होइ पढमत्ति । इयरेयरजोगेणं, उत्तरगुणधारिणो नेया॥ तइया तइयाउबंधग-जोगेण परमसावगस्सेवं । जोगाय(जोगेहि ) समाहीहिं, साहुसमकिरियफलकरणं ।। अर्थात्-देवनी पूजा द्रव्य अने भावभेदवडे बे प्रकारनी जाणवी जोईये. जो के द्रव्य-भाव अन्योन्ययुक्त छे छतां प्रधानगौणभावे बंने भिन्न छे. प्रथम पूजामां द्रव्यनी प्रधानता छ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58