Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 17
________________ [१६] जलाभिषेक के चंदनादि विलेपन पूजानुं सूचन मात्र मलतुं नथी, एथी ए वस्तु दीवा जेवी स्पष्ट थई जाय छे के पूर्वकालीन अष्टोपचारी वा अष्टप्रकारी पूजामा स्नान के चंदनादि विले. पनने स्थान न हतुं. अष्ट उपचारोमां जलोपचार हतो पण स्नानरूपे नहिं पण आचमनरूपे. पंचोपचारीमा जल नथी केमके तेमां कोई खाद्य वस्तुनुं अर्पण नथी, अष्टोपचारीमा नैवेद्य अने फलो खाद्य पदार्थों छे एटले आचमन भावनाथी जलपात्र आगल धरवु आवश्यक होई आठमो नंबर जलपूजाने मल्यो. सर्वोपचारीमा स्नान, विलेपन, गीत, नृत्य आदि बधुंये छे पण ए वस्तु पर्वानुष्ठय छे, वर्षमां के वर्षोमां आवो प्रसंग आवतो के जे वखते देशपरदेशना संघो संमिलित थता अने 'स्नानमह' करता हता, एवी ए महत्वनी वस्तु हती, एमां भाग लेनारा भाविको अने नजरे निहालनार भद्रपरिणामी आत्माओ आवा प्रसंगने उजवी के निहालीने पोताना जीवितने सफल थयुं गणता हता. सर्वोपचारी पूजाना सर्व भेदो १७ सर्वोपचारी पूजाना एकंदर १७ भेदो सुविहितकालमां ज नियत थई चूक्या हताजेनुं निरूपण जीवाभिगमादि उपां. गोमां करायेलुं छे अने ते उपरथी पूर्वाचार्योए पण पोताना ग्रन्थोमां गाथाओमां वर्णन आपेल छे, जे नांचे प्रमाणे छे Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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