Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 16
________________ [१५] कयुं छे. आचार्यश्री हेमचन्द्रमुरिजीए योगशास्त्रनी टीकामां उधृत करेल एक प्राचीन पद्यमां तो ए वस्तुने विशेष स्पष्ट करी दीधी छे, ते पद्य आ प्रमाणे छ" गन्धैर्माल्यैर्विनिर्यद्बहलपरिमलैरक्षतेधूपदीपैः, सान्नाज्यैः प्राज्यभेदैश्चरुभिरुपहृतैः पाकपूतैः फलैश्च । अम्भःसंपूर्णपात्रैरिति हि जिनपतेरर्चनामष्टभेदां, कुर्वाणा वेश्मभाजः परमपदसुखस्तोममाराल्लभन्ते ॥" अर्थात्-जेमाथी भरपूर सुगंध निकली रही छे एवा गंधो १, पुष्पमालाओ २, अक्षतो ३, धूपो ४, दीपको ५, अन्न घृतबडे बनावी प्रस्तुत करेला घणा प्रकारना नैवेद्यो ६, ताजां पाकेल पवित्र फलो ७ अने जलपूर्ण पात्रो ८ ए आठ पदार्थोवडे जिनेश्वरनी पूजा करता गृहस्थधर्मिओ वहेला मोक्षसुखसमूहने पामे छे. अष्टोपचारी पूजाने अंगे अमोए उपर जे अवतरणो आप्यां छे तेओमां पूजा योग्य आठ द्रव्योनी सूचना मात्र छे. मूल ग्रंथोमां एक एक पूजानुं पांच पांच, सात सात श्लोकोमा वर्णन कयु छे, द्रव्योर्नु वर्णन, चढाववानी रीति, पूजाओनो क्रम अने प्रत्येकनुं फल, दृष्टान्तसूचन वगेरे करेल छे. जलपूजाना निरूपणमां जल केबु जोईए, केवा प्रकारना पात्रमां भरीने जल आगल मूकबू, एना फल उपर दृष्टान्त आदि विस्तारपूर्वक वर्णन छे, पण कोई प्राचीन ग्रंथमां प्रक्षालन, Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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