Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 12
________________ [ ११ ] पौराणिक पद्धतिनुं सर्जन कर्यु. विष्णु आदि देवो एमना अवतारो आदिनी कल्पनाओ थई, एक पछी एक तेमना नामना पुराणोनी रचनाओ थई अने तेमां देवतानी पूजाओ, तेमना तोषार्थे व्रतो, दानो, तपो अने भक्त्यनुष्ठानोना उपदेश कराया अ आ पौराणिक धर्मपद्धतिए ज प्रजाना मानसने आकर्षीने सामान्य जनताने ब्राह्मण धर्ममां स्थिर करी. आर्यसमाजीओ के आजना शिक्षितो पुराणोने अंगे भले गमे वो अभिप्राय उच्चरे पण अमारी मान्यता प्रमाणे तो जैन अने बौद्ध धर्मनो सर्वतोमुखी प्रवाह आ पुराणोए ज खाल्यो छे अने आजे क्रोडो मनुष्यो जे भिन्न भिन्न पौराणिक संप्रदायोना अनुयायीओ छे ए पुराणोनो ज प्रताप समजत्रो जोईये, अने मूर्तिपूजा के जेने 'मनुजी' जेवाओए दारुना पीठानी हीनोपमा आपीने विक्कारी हती ते आजे वेद माननारा संप्रदायामां धर्मं अंग बनीने रही छे, एमी पण पुराणोनो सहकार ओछो नथी. पौराणिक कालना प्रारंभ( विक्रमना बीजा सैका ) थी वैदिक धर्मानुयायिओमां प्रतिदिन मूर्तिपूजानो प्रचार तो गयो. ठेकठेकाणे ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य आदिनां धामो बंधायां अने विविध प्रकारनी पूजापद्धतिओ प्रचलित थई अने वैष्णवोना संप्रदायो प्रगट थया, पछी तो तेमनी पूजापद्धतिओ अंतिम कोटिए पहोंची गई हती. जिनपूजामा विकास नुं अंतिम रूप बताववानी प्रतिज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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