Book Title: Jina Pooja Paddhati
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ [१०] ओथी विरुद्ध हतो छतां जनतानो प्रवाह रोकवो तेमना काबू बहारनी वात थई पडी हती. तेमना पूर्वजोए कालविशेषने अंगे जे करवानी वातो लखी हती तेनो सार्वकालिक कर्तव्योना रूपमा प्रचार थई गयो, आगल जतां बलदेव, वासुदेव, स्कंद, रुद्रादिनी मूर्तियो अने मंदिरो बनवा लाग्यां. आजी २५००-२७०० वर्षो उपर वैदिक संस्कृति, यथार्थरूप केवल ब्राह्मणोना घरोमां ज रही गयुं हतुं, वैदिक धर्मना उपासक क्षत्रियो, तेमना मार्गदर्शक केटलाक ब्राह्मणो, वैश्यो अने शूद्रोनां मनो अने घरो अनेक देवताओनां स्थानो बनी चूक्यां हतां, नगरो अने ग्रामोनी बहार गायो माटेनां सुरक्षित गोचरोमां पण यक्षो, नागो, भूतो विगेरे पहोंची गया हता अने गोच. रोने पोताना नामोथी विशेष सुरक्षित कयाँ हता. आवी बदलायेली परिस्थितिमा मूल वैदिक मार्गने पकडी रहलो ब्राह्मण वर्ग क्या सुधी टकी रहेबानो हतो ? तेमनी पासे जे वेदसंहिताओ, ब्राह्मणो, आरण्यको, श्रोतसूत्रो, उपनिषदोरूप जे वैदिक साहित्य हतुं तेनाथी तेओ सामान्य जनतानुं मन संपादन करी शके तेवी स्थितिमा न हता, एटले प्राचीन संस्कृतिना मूल स्रोत समा वेद ब्राह्मणादिने विद्वानोने माटे सुरक्षित राखी मूकीने ते शास्त्रोना सारनी संक्षिप्त यादीओ (स्मतिओ) पद्योमा रीने भिन्न भिन्न ऋषिओना नामे चढावीने तेनो प्रचार कर्यो, पण आथीये जनमानस संतुष्ट न थयुं, त्यारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58