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( उपसंहारकाव्यम् )
इदं तत्त्वातत्त्वव्यतिकरकरालेऽन्धतमसे, जगन्मायाकारैरिव हतपरं विनिहितम् । तदुद्धर्तुं शक्तो नियतम विसंवादिवचनस्त्वमेवातस्त्रातस्त्वयि कृतसपर्याः कृतधियः ||३२||
इन्द्रजालियों की तरह अधम पर - दार्शनिकों ने इस जगत को तत्त्व और तत्त्व के व्यतिकर मिश्रण से विकराल गहन अन्धकार में डाल दिया है । आप ही इस जगत् का उद्धार करने में समर्थ हैं, क्योंकि आपके वचन विसंवाद रहित हैं । हे जगत रक्षक ! बुद्धिमान मनुष्य इस कारण आपकी ही सेवा करते हैं । (३२)
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[ जिन भक्ति
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