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आपके पृथ्वी पर विचरण करने से कांटे प्रधोमुखी हो जाते हैं । क्या सूर्योदय होने पर उलूक प्रथवा अंधकार का समूह ठहर सकता है ? (६)
केशरोमनखश्मश्र तवावस्थितमित्ययम् । बाह्योsपि योगमहिमा, नाप्तस्तीर्थकरैः परैः ||७||
आपके बाल, रोम, नाखून और दाढ़ी मूछों के बाल, दीक्षा ग्रहरण करने के समय जितने होते हैं उतने ही रहते हैं । इस प्रकार की बाह्य योग की महिमा भी अन्य देवों ने प्राप्त नहीं की । (७)
शब्दरूप रसस्पर्श - गन्धाख्याः पञ्च गोचराः । भजन्ति प्रातिकूल्यं न त्वदग्रे तार्किका इव ॥८॥ आपके समक्ष अन्य (बौद्ध) तार्किकों की तरह शब्द, रूप, रस, स्पर्श और गन्ध रूप पांचों इन्द्रियों के विषय प्रतिकूल नहीं होते, अनुकूल रहते
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सर्वे,
त्वत्पादावृतवः कालकृतकन्दर्प
युगपत्पर्युपासते । साहायकभयादिव ॥६॥
मानो अनादि काल से कामदेव को की गई सहायता के भय से ही समस्त ऋतुयें एक साथ प्राकर आपके चरणों की सेवा करती हैं । (8)
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च ।
सुगन्ध्युदकवर्षेरण, दिव्यपुष्पोत्करेरण भावित्वत्पाद संस्पर्श, पूजयन्ति भुवं सुराः ||१०||
जिस भूमि पर भविष्य में आपके चरणों का स्पर्श होने वाला है उस भूमि को देवतागरण सुगन्धित जल की वृष्टि से तथा दिव्य पुष्पों के समूह से पूजते हैं। (१०)
जगत्प्रतीक्ष्य ! त्वां यान्ति, पक्षिरणोऽपि प्रदक्षिणम् ।
का गतिर्महतां तेषां त्वयि ये वामवृत्तयः ? ।।११॥
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हे विश्व पूज्य ! पक्षी भी आपकी प्रदक्षिणा करते हैं, तो फिर आपके प्रति प्रतिकूल व्यवहार करने वाले तथाकथित बड़े पुरुषों की क्या गति समझी जाये ? ( ११ )
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