Book Title: Jambudweeplaghusangrahani
Author(s): Haribhadrasuri, Nandighoshvijay, Udaysuri
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 39
________________ सटीकजंबूद्वीपसग्रहणी हैरण्यवतरम्यकाख्यानि त्रीणि उत्तरस्यां, मध्ये च महाविदेहमिति । स्थापना चेयम् - 'चित्राङ्कः २ जंबूद्धीप: अन्तीप 60000000 वैताढय VAVAVAM 6000000 एरवत शिरि पर्वत / 6000000 अन्तर्वीप अन्तीप 1000000 हैरण्य वत् क्षेत्र -रूप्यकुला, रुपि पर्वत -सुवर्णकुला नारीकांता -नरकांता उत्तरकुरू (d नीलवंत पर्वत || || | सीतोदा-पश्चिम महा विदेह मानवालालामामा देवकुमाननानालामानामाला -पूर्व महाविदेह VVV निषध पर्वत /Wससलालसा हरिकांता -हरिवर्ष क्षेत्र... -हरिसलिला महा हिमवान हिमवंत क्षेत्र --रोहितांशा 'रोहिताअन्तर्वीप OODWWहिमवान्/WWWWWW सिंधु अन्तीप गंगाभरत A Mवैताढय /सहल - 00 VL Ooooooo 000000 Oooooo9 अन्तीप प्रभास बरदाम, मागध अन्तीप तेषु दक्षिणस्थं भरतं उदरस्थं चैरावतं तुल्यरूपे । एवं हैमवतहैरण्यवते तुल्यरूपे निरूपिते । हरिवर्षरम्यकेऽपि समस्वरूपे । महाविदेहं चतुर्धा, पूर्वापरविदेहदेवकुरूत्तरकुरुभेदात् । तत्र पूर्वापरविदेहाः समस्वरूपाः । एवं देवकुरूत्तरकुरवोऽपि तुल्यरूपाः । अत्रे त्रयः कर्मभूमयः षट् चाकर्मभूमयः । कर्मभूमि म यत्र कृष्यसिमष्यादिकर्म विद्यते, यत्रस्था मनुष्या मोक्षभाजो नरकादिनानाविधगतिभाजश्च भवन्ति । तद्विपरीता चाकर्ममही, तत्रस्था ( मनुष्या) देवगतिगामिनः । तत्र भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयः । शेषास्तु हैमवतहरिवर्षहैरण्यवतरम्यकदेवकुरूत्तर dain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142