________________
(८)
खंडनको पढा है तबसे मुझे विश्वास हुआ कि-इस सिद्धान्तमें बहुत कुछ है, जिसको वेदान्तके आचार्यने नहीं समझा और जो कुछ अभी तक मैं जैनधर्मको जान सका हूं उससे मेरा यह विश्वास दृढ हुआ है कि, यदि वह जैनधमको उसके असली ग्रन्थोसे देखनेका कष्ट उठाता तो, उनको जैनधर्मसे विरोध करनेकी कोई वात नहीं मिलती".
एज प्रमाणे वैष्णवाचार्य श्रीराममिश्रशास्त्रीजी पण लखे छे, जुओ आज पुस्तकना प्रथम भागना पृ. ९६ थी "जैनदर्शन वेदान्तादि दर्शनोसें भी पूर्वका है तब ही तो भगवान् वेदव्यास महर्षि ब्रह्मसूत्रोमें कहते है ' नैकम्मिन्नसंभवात् 'xxx वेदोमें अनेकान्तवादका मुल मिलता है. " तथा पृ. १०७ थी काका कालेलकर पण जणावे छे के-" जैनतत्त्वज्ञानमां स्याद्वादनो बराबर शो अर्थ छे ते जाणवानो दावो हं करी शकतो नयी, पण हुं मानुं के " स्याद्वाद" मानवबुद्धिनुं एकांगीपणुंज सूचित करे छे " इत्यादि.
वळी पृ. ११० थी आनंदशंकर बापुभाई ध्रुव पण लखे छे के-शंकराचार्य स्याद्वाद उपर जे आक्षेप कयों छे ते मूल रहस्यनी साथे संबन्ध राखतो नथी" इत्यादि.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org