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आचारांग-सूची
.८ श्रु०१, अ०२, उ०१ सू०७२ वायुकाय का अहिंसक संयमी वायुकायिक हिंसा से विरत मुनि
,, , अविरत द्रव्यलिंगी ,, हिंसा की परिज्ञा ,, हिंसा के हेतु , , का फल
" , के फल का ज्ञाता छ वायुकाय का हिंसक अन्य अनेक जीवों का हिंसक
से संपातिम जीवों का संहार के हिंसक को वेदना का अज्ञान के अहिंसक को वेदना का ज्ञान की हिंसा से विरत होने का उपदेश की परिज्ञा वाला ही मुनि है
के हिंसक के प्रचुर कर्मबंध ६२ क सम्यक्त्वी का लक्षण ___ख छह कायकी हिंसा का सर्वथा त्यागी ही मुनि है सूत्र संख्या ७
द्वितीय अध्ययन लोकविजय
प्रथम स्वजन उद्देशक क . संसार के मूल कारण
विषयी जीव विवेक हीन अशरण भावना अप्रमाद का उपदेश (अनित्य भावना) परिग्रह (अशरण भावना)
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६६-७२ आत्मोपदेश सूत्र संख्या १०
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