Book Title: Jain Yug 1960
Author(s): Sohanlal M Kothari, Jayantilal R Shah
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 93
________________ જૈન યુગ માર્ચ–એપ્રિલ ૧૯૬૦ श्री प्रतापमल सेठीआ-मुंबई प्रभः-१ संघठित शक्ति के बीना वर्तमानयुग मे कोइ समाज, जाति, धर्म आदि उन्नति नहीं कर सकते. जिसके पास शक्ति अतूट है पर वो छीनभिन्न है, बिखरी हुइ है एकत्रित नही है तो वो अतूट शक्ति का भी कोई मूल्य नही है। कोन्फरन्स ही एक ऐसी संस्था है जो समाज की शक्ति है अतःएव इसकी उपयोगीताके विषय में तो दो मत हो ही नहीं सकते। आजसे ५९ वर्ष पहले भी इसकी आवश्यकता महसुस कर यह स्थापन की गई तो वर्तमान युगमें तो वो आवश्यकता बहुत ज्यादा हो गई है अतः इसकी उपयोगीता में तो कोइ इनकार कर ही नहीं सकता। प्रश्न:-२ आज जो यह प्रश्नावलि पुछी जाती है यह बताती है कि कोन्फरन्स मे शिथिलता है, जनताका प्रेम व सहयोग बराबर नही है, पक्षपक्षी है खेंचातानी है। नही तो यह प्रश्नावलि पुछनेका मोका नहीं आता। इसलिए यह विचार करना है कि क्यों एसा हो रहा है और उसका उपाय . क्या है इस संबन्ध मे मेरी दृष्टि में जो आता है निवेदन करता हूँ। कमेटी व कार्यकारिणी कमेटी कोइ वाद विवाद का स्थल नहीं है। वो तो परस्पर मिलकर काम करने के लिए नियुक्त की जाती है परन्तु देखा यह जाता है के, यदि मेरी राय नहीं मानी गई तो मैं शीघ्र विरोधी बनकर आलोचना करने लग जाता हुं यह चीज अवांछनिय है और संस्था के लिए घातीक है। इससे कोई भी काम करने के लिए उत्साहित ही नही होता है और जब कोई काम नहीं होता है तो संस्था के प्रति जनताका प्रेम व आकर्षण नही होना स्वभाविक हो जाता है और वोही संस्था के कमजोरीका कारण हो जाता है। अतएव यह सदस्य व मन्त्री सत्र बहत प्रेम के साथ मिलजुस कर काम करनेवाले उदार विचार वाले, संप्रदाय, संघाडा-गच्छ, जाति, कोम आदि के पक्षपातरहित हो, विरोधी विचारवाले न हो तो बहुत उन्नति हो सकती है। (ग) श्वेतांबर मूर्तिपूजक संप्रदाय में भी गच्छादि के नामसे पृथक पृथक क्रियाकांड होते है जो सब जानते है और सबकी प्रायः पृथक पृथक संस्थाएं भी है तो उन सत्र संस्थाओं से संपर्क उनके प्रतिनिधियो को टेवा यति कार्य कीया जाय तो कोन्फरन्स का अधिकांश भार कम हो जाय। उन संस्थाओं के प्रतिनिधि अपनी अपनी क्रिया करते हुवे भी उदार विचारवाले हो । एक दुसरों की क्रियाकांडोपर आक्षेप व टिका टिप्पण न करते सबके साथ प्रेम से मूलभुत सिद्धांतो पर वा महत्व के प्रश्नों पर सबके सहयोगके साथ काम करे। (घ) संस्थाको जनताका प्रेम प्राप्त करने का भरसक प्रयत्न करना चाहिये। शीर्फ कहनेसे व भाषणो से यह चीज नही मिल सकती उनके संपर्क मे जितना हो सके अधिकसे अधिक आना चाहिये। उसके विचारो को जानना उनकी भावनाको समजना उनको जितना सहयोग देसके देना इससे जनता का प्रेम व उनका आकर्षण संस्था के प्रति होगा और यह होना ही संस्था की मजबूती है। अतः यह प्रयत्नकी तरफ लक्ष होना चाहिये जिसका वर्तमान में अभाव नजर आता है। (क) संस्था की उन्नति-अवनति का सारा आधार प्रायः मन्त्रीपर निर्भर होता है। यदि मन्त्री समय का भोग देनेवाला निःस्वार्थ सेवाभाव से अपने आप को संस्था के अर्पण कर देता है तो संस्था कि उन्नति में कोई शंका ही नही हो सकती। वर्तमान के मन्त्री महोदय की योग्यता में कोई कसर नही है पर समय का भोग जितना चाहिये वो नही दे सकते है। यहां तो हमेशा बहुतसा समय देनेवाले की आवश्यकता होती है अतएव सर्व प्रथम तो इस बातपर पुरा ध्यान देना आवश्यक है। (ख) स्टेन्डीग कमेटी के व कार्यकारिणी के सदस्य भी एसे हो जो परस्पर मिलजुलकर काम करे। वर्तमान में मैं देखता हूं कि इसका पुग अभाव है। जब मीटींग होती है तो प्रायः एकदुसरे की आलोचना ही अधिकतर होती है। सदस्यों के हृदय में तो यह भाव होने चाहीये के हमारे मेंसे किसी ने भी कुछ कीया या मन्त्री ने कीया तो संस्था के हित के लिए ही किया है। उनपर इतना विश्वास होना चाहिये । गलती होना तो स्वभाविक है पर उनकी गलती वो हमारी है, हमारी है वो उनकी है, इस प्रकार की भावनाके साथ काम करना चाहिये। स्टेन्डींग (ड) यह संस्था अखिल भारतीय होते हुवे भी केवल गुजराती समाज की हो और गुजरात तकही सिमित हो ऐसा अधिकतर लगता है और इस कारण से मारवाड, मेवाड, मालबा आदि की जनता का प्रेम व आकर्षण इसकी तरफ बहुत कम है। अतएव उनका भी प्रेम व

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