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જૈન યુગ
માર્ચ-એપ્રિલ ૧૯૬૦
बी. ए. व बी. एससी. आनर्स परीक्षाओं के भिन्न-भिन्न विषयो में प्रथम स्थान पाने वाले छात्रों में से सिर्फ प्रथम बारह छात्रों को मिलती है, आपने प्राप्त की। सन १९३३ में एम. एससी. (जियोलोजी) की परीक्षा में मी आपने प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त किया। आपको 'कलकत्ता विश्वविद्यालय स्वर्णपदक' प्राप्त हुआ। सन १९३४ में आपने बी. एल. की परीक्षा पास की। आपका विवाह सन १९२६ में आगरा निवासी श्रीयुत बाबू पन्नालालजी पाटनी की सुपुत्री श्रीमती अंगूरी देवी से हुआ।
बाद श्री नरेन्द्र सिंहजी अपने पिता के व्यापार व्यवसाय में भाग लेने लगे। अपनी वैज्ञानिक बुद्धि के कारण थोड़े ही दिनों में इस काम में भी आपने कुशलता प्राप्त की एवं 'झगराखण्ड कोलियरीज लि.', 'डालचन्द बहादुरसिंह' व 'सिंघी सन्स लि.' के मेनेजिंग डायरेक्टर बने एवं उन्हें उत्तरोत्तर समृद्ध बना रहे हैं। आपने उद्योग व व्यापार व्यवसाय के विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति की है एवं न्यू इण्डिया टूल्स कम्पनी नामक औद्योगिक कारखाना भी स्थापित किया। ___ अपनी व्यवसाय विषयक योग्यता के कारण आप 'इण्डियन चेम्बर आफ कामर्स', 'इण्डियन माइनिंग फेडरेशन आफ इण्डस्ट्रियल एप्लायर्स' की कार्यकारिणी समितियों के सदस्य बनाये गये। आप सन १९५७-५९ वर्ष के 'इण्डियन माइनिंग फेडरेशन' के सभापति चुने गये । भारत सरकार ने आपकी कार्यदक्षता और निपुणता के कारण 'कोल काउंसिल आफ इण्डिया' के सदस्य भी नियुक्त किया है। इस कमेटी पर देश के पूर्ण कोयला उद्योग का भार है । मध्य प्रदेश सरकार ने भी आपको 'मध्यप्रदेश इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड' का सदस्य नियुक्त किया है।
आप 'भारतीय जियोलाजिकल माइनिंग मेटलर्जिकल सोसाइटी' के उप-सभापति हैं एवं अगस्त सन १९६० में डेन्मार्क में होने वाली अन्तर्राष्ट्रीय जियोलाजिकल कोन्फरन्स में उस सोसाइटी के प्रतिनिधि होकर भाग लेंगे।
सफल विद्यार्थी जीवन व व्यवसाय-कुशलता के साथसाथ सार्वजनिक हित की दृष्टि भी आपमें पूर्णरूपेण विद्यमान है। प्रारम्भ में आपने अपने जन्म-स्थान को ही सार्वजनिक प्रवृत्ति का क्षेत्र बनाया व अपनी अमूल्य सेवाओं के कारण सन १९३६ से १९४५ तक आप 'जियागंज हाई स्कूल' के मंत्री व सन १९३६ से
१९४४ तक लालबाग 'मुर्शिदाबाद' के आनररी मजिस्ट्रेट रहे।
सन १९४३ के बंगाल के भयंकर दुर्भिक्ष काल में मुर्शिदाबाद जिले में आपकी दानशीलता, उदारता एवं सेवाएं इतिहास के सुनहरे पृष्टों में लिखी जाती है। सिंधी परिवार ने अढाई लाख रुपये की हानि सहन करते हुए दानशीलता का परिचय दिया।
इन लोकहितकर प्रवृत्तियों के अलावा राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक व शिक्षणसंबंधी प्रवृत्तियों में भी आप भाग लेते हैं। अपनी उदार दृष्टि के कारण सन १९४५ में आप बंगाल लेजिस्लेटिव असेंब्ली के सदस्य (एम. एल. ए.) चुने गये। आप अ. भा. ओसवाल महासंमेलन के मंत्री, सुप्रसिद्ध सिंधी पार्क मेला के कोषाध्यक्ष व जियागंज सिविल इवाक्युएशन रिलीफ कमेटी के मंत्री रहे हैं। 'श्रीपतसिंह कॉलेज, जियागंज के आप संस्थापक मंत्री थे व उसे अपनी दक्षता से उन्नत बनाकर के सुपुर्द किया। आप सन १९४६ में काशी हिंदु विश्वविद्यालय के कोर्ट के सदस्य भी चुने गये। बम्बई के भारतीय विद्या भवन के आप संचालक समिति के सदस्य है।
जैन समाज के तो श्री सिंघीजी प्रमुख आमेवान नेता हैं। आपने 'श्री जैन भवन' कलकत्ता को पिताजी के १५००१ रुपयों के अतिरिक्त १० हजार रुपये दिये हैं। आप इसके स्थायी ट्रस्टी हैं। अनेक वर्षों तक मंत्री व कोषाध्यक्ष रहे और अभी भी इसके सभापति है। श्री सम्मेत शिखर तीर्थधाम के मंदिरों का जीर्णोद्धार हो रहा है, उसके संपूर्ण कार्य की प्रशंसनीय रूप से सुचारु व्यवस्था कर रहे हैं, जिसके लिये संपूर्ण जैनजगत आभारी रहेगा। इस समिति को आपने ११००१ रु. का चन्दा दिया है। आप मुर्शिदाबाद जैन संघ के भी सभापति है। आप जैन महामण्डल के उपाध्यक्ष भी है।
स्व. बाबू बहादुरसिंहजी सिंघी ने जिस सिंघी जैन ग्रन्थमाला की स्थापना 'भारतीय विद्या भवन' बम्बई में की थी उसका खर्च श्री. नरेन्द्रसिंह सिंघी अपने ज्येष्ठ भ्राता के साथ संयुक्त रूप से चला रहे है। इस ग्रन्थमाला के निमित्त बाबू बहादुरसिंहजी की मृत्यु के बाद प्रकाशन का काम आगे जैसा ही चालू है इस ग्रन्थमाला के तत्त्वावधान में ४५ ग्रन्थ निकल चुके हैं, जिसमें कई