Book Title: Jain Yug 1960
Author(s): Sohanlal M Kothari, Jayantilal R Shah
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 143
________________ જૈન યુગ માર્ચ-એપ્રિલ ૧૯૬૦ आगमिक, दार्शनिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, कथात्मक, इत्यादि विविध विषय संबंधी शास्त्रो और प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों का नूतन संशोधनात्मक साहित्यिक प्रकाशन हुआ है। इसके अलावा और भी अनेक धार्मिक व शिक्षण सम्बधी संस्थाओं में आपने उदारतापूर्वक दान किया है। आपने अपने निवास स्थान सिंघी पार्क में 'श्री बहादुर सिंहजी सिंघी भारतीय स्थापत्य शिल्प निकेतन' की स्थापना की हैं। पूर्वी बंगाल से आए हुए उद्वास्तुओं के लिए अन्न, वस व जल की व्यवस्था के लिए मी आपने खर्च किया। अपने स्वर्गीय पिता के निकट मित्र प्रसिद्ध जैन विद्वानों को अपने विद्याप्रेम से श्री नरेन्द्रसिंहजी ने आकृष्ट किया है। पिताश्री के बहुमूल्य सिक्के, चित्र, मूर्ति, हस्तलिखित ग्रन्थ आदि का सारा संग्रह आप ही के पास है। इस संग्रह को प्रकाश में लाने व इन विषयों के विशिष्ट विद्वानों को उसे अध्ययन करने का अवसर देने का प्रबन्ध भी किया जा रहा है । इस संग्रह के कई सिक्के, मूर्तियां व चित्र तो ऐसे हैं, जो अन्यत्र अप्राप्य हैं । संग्रह के प्राचीन सिक्कों की संख्या कई हजार है, जिनमें ग्रीक, कुशाण, गुप्त, पठान, मुगल आदि साम्राज्य दो सिर्फ स्वर्ण मुद्राओं की संख्या २००० से भी अधिक है। छत्रपति शिवाजी जिन पन्नों की राम सीता 'वजन अंदाज़ २०० रत्ती', लक्ष्मण 'वजन अंदाज २०० रत्ती'। भरत व शत्रुघ्न की मूर्तियों की पूजा किया करते थे, वे सब आपके संग्रह में ही हैं । इन मूर्तियों के अलावा छत्रपति द्वारा पूजित एक हीरे का शिवलिंग भी आपके पास हैं। संग्रह में माणिक्य की गणेशजी की मूर्ति, सम्राट जहांगीर के नाम से अंकित लालड़ी के मणि व शाहजहां बादशाह के नाम से अंकित पन्ना की तकती भी है । सोने पर सुन्दर भीने के काम वाली अनेक प्राचीन चीजें-अनमोल हाथी दांत की पुरानी मूर्तियां भी इस संग्रह में हैं। अन्यत्र अप्राप्य पर्सियन, मुगल, राजपुत कांगडा, पहाडी, आदि शैली के प्राचीन चित्रों का समावेश भी इस संग्रह में है। प्राचीन चित्रित ग्रन्थों में कई पर्सियन ग्रन्थ ऐसे है जिसमें शहाजहां औरंगझेब आदी बादशाहों के हस्ताक्षर व मुहर है। बादशाह औरंगजेब जिस कुरान को पढ़ते थे, वह भी इस संग्रह में है। जैन चित्रित ग्रन्थों में एक श्री शालिग्राम चरित्र है जिसमें सम्राट अकबर व जहांगिर की सभा के प्रसिद्ध चित्रकार शालिवान द्वारा अंकित ३२ चित्र है। इस ग्रन्थ का लेखन व चित्रण विक्रमी सं. १६८१ द्वितीय चैत्र शुदि शुक्रवार तदनुसार एप्रिल १ जून १६२५ ई. को सम्राट जहांगिर के राज्य में समाप्त किया था। संग्रह में कई प्राचीन ताम्रपत्र भी है। यह संग्रह विश्व के नामी संग्रहों में से एक है। दूर देशान्तर से विद्वान् व सुप्रसिद्ध लोग इस संग्रह को अवलोकन करने के लिए आते हैं एवं इसकी हार्दिक प्रशंसा करते हैं। श्री सिंघी जी की तरफ से भी विद्वानों एवं विदेशियों को इस संग्रह की वस्तुओं का अध्ययन करने के लिए पूर्ण सहयोग और सुविधाएं दी जाती हैं। कला तथा स्थापत्व शिल्प सम्बन्धी सामंजष्य ज्ञान में आप अपने स्वर्गीय पिताश्री से अनुप्रेरित हुए हैं। श्री पावापुरी जल मन्दिर की चहारदीवारी एवं श्री सम्मेत शिखरजी के टोंक व मन्दिरी का जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण का कार्य आपके इस तीव्र कलात्मक ज्ञान का परिचायक है। काटन स्ट्रीट, कलकत्ता स्थित श्री जैन मन्दिर को मकराने एवं कारीगरी के काम से सुन्दर रूप देने का उत्तरदायित्व आपको सौंपा गया है। श्री नरेन्द्रसिंहजी सिंघी का पारिवारिक जीवन सुखी एवं समृद्ध है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती अंगूरीदेवी एक सुसंस्कृत बुद्धिमती एव सुदक्षा गृहिणी हैं। आपकी सद्बुद्धि, चतुरता एवं उचित परामर्श से श्री सिंधी जी को अपने कार्य और जीवन में अपूर्व सहायता मिलती है। आप के दो पुत्र व चार पुत्रियां हैं। आपके परिवार के सभी व्यक्ति सुसंस्कृत, सरल स्वभाव के एवं कर्तव्य निपुण हैं।

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