Book Title: Jain Yug 1960
Author(s): Sohanlal M Kothari, Jayantilal R Shah
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 141
________________ आगामी अधिवेशन के प्रमुख श्री नरेन्द्र सिंह जी सिंघी (परिचय). कलकत्ता निवासी श्री नरेन्द्रसिंहजी का जन्म बंगाल प्रान्त के मुर्शिदाबाद जिल्ले के अजीमगंज में सन १९१० में हुआ था। वे स्वर्गस्थ स्वनामधन्य बाबू बहादुरसिंहजी सिंधी के सुपुत्र हैं। श्री नरेन्द्रसिंहजी के पितामह श्री डालचन्दजी सिंधी कलकत्ता के एक प्रमुख व्यवसायी थे। सत्यप्रियता, सूक्ष्म प्रज्ञा व असीम धैर्य-तीनोंका उनमें अपूर्व समावेश था। सच्चरित्रता व सत्यप्रियता के कारण बंगाल के एक सुप्रसिद्ध प्रामाणिक व्यापारी के रूप में उन्होंने विशिष्ट ख्याति प्राप्त की थी। सन १९०१ में जब कलकत्ते में जूट वेलर्स एसोसिएशन की स्थापना हुई, तब आप ही उसके सर्वप्रथम सभापति बनाये गये। श्री नरेन्द्रसिंहजी के पिता स्वनामधन्य श्री. बहादुरसिंहजी सिंघी का जन्म सन १८८५ में हुआ था। आपका विवाह मुर्शिदाबाद के सुप्रसिद्ध राय लक्ष्मीपतसिंह बहादुर की पौत्री श्रीमती तिलक सुन्दरी से हुआ था। आपने उच्च श्रेणी की शिक्षा प्राप्त की थी। आपका स्वभाव बड़ा सरल और मिलनसार था। ___ आपने अपनी कार्यकुशलता से अपने पिताजी के व्यवसाय को और भी समृद्ध बनाया। पिताजी की व्यवसाय सम्बन्धी परिकल्पनाओं को कार्यस्वल्प परिणित किया। आपने दि जूट बेलर्स एसोसिएशन का सभापतित्व भी स्वीकार किया। आपको पुरानी कारीगरी का बेहद शौक था। पुरानी कारीगरी की कई ऐतिहासिक वस्तुएं, जैसे सिक्के, चित्र, मूर्ति, हस्तलिखित ग्रन्थ आदि का अपने यहां बहुमूल्य संग्रह किया। इस संग्रह ने आज हिन्दुस्तान में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। आपने अपने पिताजी की जैन साहित्य विषयक अपूर्ण अभिलाषा की पूर्ति भी की। उन्होने जैन पण्डित श्री सुखलालजी व मुनि श्रीजिनविजयजी जैसे असाधारण विद्वानों को अपने सहज विद्या-प्रेम से आकृष्ट किया। कवि सम्राट रवीन्द्रनाथ के शांति-निकेतन वोलपूर में आपने सिंघी जैन विद्यापीठ की स्थापना की, जिसमें जैन धर्म के सुप्रसिद्ध विद्वान और पुरातत्वज्ञ श्री जिनविजयजी आचार्य ने काम शुरू किया और इसी के फलस्वरूप भारतीय विद्या भवन बम्बई से प्रकाशित सिंघी जैन ग्रन्थमाला उपलब्ध है। इस ग्रंथमाला में जैन आगमिक, दार्शनिक, साहित्यिक ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, कथात्मक इत्यादि विविध विषय सम्बन्धी शास्त्रों और पुराने हस्तलिखित ग्रन्थों का नूतन संशोधनात्मक साहित्य का प्रकाशन हुआ और अब भी उनके सुपुत्रों के प्रोत्साहन से चालू है। इस ग्रंथमाला में प्रायः ४ लाख रुपया खर्च हुआ है। ___ संवत १९९६ में बम्बई में होनेवाली जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्स के विशेष शत्रुजय अधिवेशन और पंजाब के गुजरानवाला गुरुकुल के छठवें अधिवेशन के भी आप सभापति रहे । आप श्री जैन भवन कलकत्ता के संस्थापक भी थे। आपने श्री जैन धर्म प्रचारक संस्था की सन १९३६ में स्थापना की और स्वर्गवास होने तक उसका सभापतित्व करते रहे। इस संस्था द्वारा तन-मन-धन से जैन धर्म को फिर से पूर्वी भारत की सराक श्रावक जाति में पुनर्जीवित करने की भरसक चेष्टा करते रहे। जैन विद्वानों और रिसर्च विद्यार्थियों को भी पूर्ण सहायता व प्रोत्साहन दिया। बाबू बहादुरसिंहजी सिंघी में विविध विषय ग्राहिणी प्रतिभा थी। वे जिस विषय को पकडते थे, चाहे वह दर्शन हो, साहित्य हो, इतिहास हो, स्थापत्य, मूर्तिकला, या चित्रकला हो, उसके हृदय तक पहुंचे विना नहीं रहते थे। श्री नरेन्द्रसिंहजी सिंघी का विद्यार्थी-जीवन बहुत ही सफल रहा। सन १९३१ में आपने बी. एससी. परीक्षा में आपको जियोलोजी आनर्स में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। इस सफलता के कारण कलकत्ता विश्वविद्यालय की सुप्रसिद्ध 'जुबिली स्कालरशिप' जो कि

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