Book Title: Jain Vidya 22 23
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 6
________________ प्रकाशकीय शोध पत्रिका 'जैनविद्या' का यह अंक 'पण्डित आशाधर विशेषांक' के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर हम हर्षित हैं। पं. आशाधर तेरहवीं शताब्दी के बहुमुखी प्रतिभा के धनी, असाधारण कवि एवं जैनागम में निष्णात विद्वान थे। इनका अध्ययन अगाध और अपूर्व था। इन्होंने संस्कृत भाषा में न्याय, व्याकरण, काव्य, अलंकार, अध्यात्म, पुराण, शब्दकोश, धर्मशास्त्र, योगशास्त्र, वैद्यक, ज्योतिष आदि विषयों से सम्बन्धित विपुल ग्रन्थों की रचना कर जैन वाङ्मय को समृद्ध करने में अभूतपूर्व योगदान किया। इन्होंने लगभग बीस मौलिक ग्रन्थों के सृजन के अतिरिक्त अनेक टीका-पंजिका, पूजा-विधान, भक्ति, प्रतिष्ठा आदि की रचना भी की। 'धर्मामृत' इनकी कालोत्तीर्ण रचना है जो गृहस्थों एवं साधुओं के आचार को दर्शानेवाले 'सागार धर्मामृत' और 'अनगार धर्मामृत' - इन दो खण्डों में विभाजित है। इनके अपरिमित ज्ञान के कारण अनेक मुनियों और विद्वानों ने इन्हें 'प्रज्ञापुंज', 'नय-विश्वचक्षु', 'कलि-कालिदास', 'सूरि' आदि अनेक उपाधियों से विभूषित किया। गृहस्थ होने पर भी इन्हें 'आचार्यकल्प' कहा जाता है। दिगम्बर जैन-परम्परा में इनका जैसा गृहस्थ विद्वान और ग्रन्थकार अन्य कोई दिखाई नहीं देता। जिन विद्वानों ने अपनी रचनाओं के द्वारा इस अंक के प्रकाशन में सहयोग प्रदान किया है उन सभी के प्रति हम आभारी हैं। पत्रिका के सम्पादक, सम्पादक मण्डल के सदस्यगण, सहयोगी सम्पादक सभी धन्यवादाह हैं। नरेशकुमार सेठी अध्यक्ष नरेन्द्रकुमार पाटनी मंत्री प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी

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