Book Title: Jain Vidya 08 Author(s): Pravinchandra Jain & Others Publisher: Jain Vidya Samsthan View full book textPage 8
________________ (ii) जनविद्या कुशल थे । वे तत्कालीन नरेश विजयपाल के द्वारा भी सम्मानित किये जाते थे । उनके तीन पुत्र आहुल, रल्हो, व राहुल थे, ये सभी मुनिजी के भक्त थे । खेद का विषय है कि मुनिजी ने अपने इस भक्त के नाम के बारे में अपने ग्रन्थ में कहीं भी संकेत नहीं दिया है, जिस नगरी 'पासाइउ' में रहकर ग्रन्थकार ने अपने ग्रन्थ की रचना की है, उसके बारे में भी निश्चित सूचना नहीं है। इस नाम की कम से कम 3 नगरियां तो अवश्य मिलती हैं। इनके बारे में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा सन् 1964 में प्रकाशित 'करकंडचरिउ' की प्रस्तावना में विद्वान् सम्पादक डा. हीरालालजी जैन ने जो विश्लेषण प्रस्तुत किया है उसके अनुसार यह 'प्रासाइउ' नगरी वर्तमान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के समीप की 'पाशापुरी' प्रतीत होती है जो इस समय काफी भग्नावशेष अवस्था में है एवं जहाँ एक भग्न जैन मन्दिर में भगवान् शान्तिनाथ की 16 फीट ऊंची खड्गासन मूर्ति है । शिलालेखों व अन्य ग्रन्थकारों की रचनाओं से यह भी प्रतीत होता है कि करकंडचरिउ सम्भवतः सन् 1040 व 1050 के बीच में रचा गयो है । इसी काल में बुन्देलखण्ड में तीन नरेशों विजयपाल, भूपाल व कर्ण का उल्लेख प्राप्त होता है। इस 'करकंडचरिउ' में प्रतापी महाराजा करकण्डु का चरित्र-वर्णन दश सन्धियों (अध्यायों) में किया गया है । महाराज करकण्ड के समय का तो निश्चित रूप से पता नहीं है परन्तु कुछ विद्वानों का मत है कि उनकी मां पद्मावती राजा चेतक की पुत्री थी । इस बारे में भी मतभेद है । 'करकंडचरिउ' के आधार पर अंगदेश की चम्पापुरी के राजा धाड़ीवाहन कुसुमपुर में एक अपरिचित, सुन्दर युवती को देखकर उस पर मोहित हो गये । तत्पश्चात् उस युवती के संरक्षक एक माली से ज्ञात हा कि वह वास्तव में कौशाम्बी के राजा वसुपाल की पुत्री पद्मावती थी जिसे अपशकुन के कारण जमुना नदी में बहा दिया गया था । घाड़ीवाहन ने उससे विवाह कर लिया। कुछ समय पश्चात् जब वह गर्भवती हुई तो दोहले के कारण वह ' राजा के साथ एक हाथी पर वनभ्रमण को गई जहाँ वह दुष्ट हाथी रानी पद्मावती को लेकर जंगल में भाग निकला। राजा बच गया एवं शोक में व्याकुल अपनी राजधानी को लौटा । किसी प्रकार रानी बहुत दूर जाकर सरोवर में कूद कर बच तो गई परन्तु जंगल में भटक गई। श्मशान में उसने पुत्र को जन्म दिया जहाँ से उसे एक मातंग (चाण्डाल) उठा ले गया। वास्तव में यह चाण्डाल एक विद्याधर था जो किसी श्राप के कारण मातंग का जीवन व्यतीत कर रहा था। यह पुत्र अपने कर में कण्डु अर्थात् खुजली के दाग के कारण करकण्डु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कालान्तर में पुण्योदय से वह दन्तीपुर का राजा बना एवं श्राप के मिटने के कारण वह मातंग भी अपने वास्तविक रूप में विद्याधर बन गया। राज्यविस्तार की इच्छा से करकण्डु ने कई देशों पर आक्रमण कर उन्हें अपने अधीन किया। जब उसने चम्पापुर पर भी आक्रमण किया तब उसकी माँ पद्मावती ने आकर पिता-पुत्र में मेल कराया। राजा धाड़ीवाहन ने भी चम्पापुर का राज्य अपने पुत्र करकण्डु को देकर वैराग्य धारण किया। करकण्डु ने गिरिनगर की राजकुमारी मदनावली, सिंहलद्वीप की राजपुत्री रतिवेगा आदि कई युवतियों से विवाह किया। करकण्डु एवं उसकी रानियां मदनावली व रतिवेगा पर विपत्तियां भी आई परन्तु पूर्व जन्म में उपार्जित पुण्य के कारण विपत्तियों से छुटकारा भी प्राप्त होता रहा।Page Navigation
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