Book Title: Jain Vidya 08
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 53
________________ जनविद्या प्रत्येकबुद्धचरित-श्वेताम्बर साहित्य में प्रत्येकबुद्धों पर अनेक काव्य लिखे गये जिनके नाम प्रत्येकबुद्ध चरित ही हैं। इनमें करकंडु, नग्गय, नमि मौर दुर्मुख की कथायें दी गयी हैं । इनमें भी करकंडु की कथा ही प्रमुख रूप से वर्णित है । प्रस्तुत प्रत्येकबुद्ध चरित प्राकृत भाषा में निबद्ध है। इसके रचयिता श्री तिलकसूरि हैं जो चन्द्रगच्छीय शिवप्रभ सूर्य के शिष्य थे । इसकी रचना संवत् 1261 में हुई। इसमें 6050 श्लोक हैं और यह अब तक अप्रकाशित है।10 प्रत्येकबुद्धचरित-इसका अपरनाम प्रत्येकबुद्धमहाराजर्षि चतुष्कचरित है। संस्कृत भाषा में निबद्ध इसके चार पर्यों में चार-चार सर्ग और एक चूलिका सर्ग है । कुल 10130 अनुष्टुप् श्लोक हैं । इसकी प्रति जैसलमेर के शास्त्र मंडार में है ।11 काव्य के अन्त में दी गयी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके रचयिता जिनरत्नसूरि और लक्ष्मीतिलकगणि दो व्यक्ति हैं, जो सुधर्मागच्छ में हुए हैं । ये जिनेश्वरसूरि के शिष्य थे जिन्होंने जावालिपुर (जालौर) में लक्ष्मीतिलक को 1288 सं० में दीक्षा दी थी। इन्होंने विक्रम संवत् 1311 (1254 ई०) में उक्त काव्य की रचना की थी।12 इसमें करकंडु, द्विमुख, नमि और नग्गति का जीवनचरित अंकित है। भाषा सरल और स्वाभाविक है। प्रमुख रस शान्त है। यह एक पौराणिक महाकाव्य कहा जा सकता है । प्रत्येकबुद्धचरित-इसका अपर नाम प्रत्येकबुद्ध चतुष्टयचरित भी है । इसके रचयिता जिनवर्धनसूरि हैं। यह संस्कृत भाषा में निबद्ध है ।13 इसका समय विक्रम संवत् की चौदहवीं शती का अन्तभाग स्वीकार किया गया है ।14 प्रत्येकबुद्धचरित-इसके लेखक समयसुन्दरगणि हैं। इसकी भाषा संस्कृत है ।15 प्रत्येकबुद्धचरित-यह अपभ्रंश भाषा में लिखा गया है, इसके लेखक अज्ञात हैं। अतः इसका समय निश्चित कर पाना कठिन है । इसमें 15 सन्धियां हैं । इसकी प्रति पाटन के शास्त्रभण्डार में है ।16 .. प्रत्येकबुद्धचरित-इसका अपर नाम करकंडु कलिंगसु है । पीटरसन ने अपनी रिपोर्ट में इसका वर्णन किया है। इसका समय संवत् 1398 है। इसमें 141 गाथाएं हैं ।17.... प्रत्येकबुद्धचरित-इसके लेखक और समय प्रज्ञात हैं ।18 . ... प्रत्येकबुद्धकया-प्राकृत गद्य में लिखी गयी इस कृति के लेखक अज्ञात हैं । करकणचरिउ-करकण्डस्वामी के चरित को जग-जाहिर करनेवालों में यदि किसी का नाम लिया जा सकता है तो वे मुनि कनकामर ही हैं। उन्होंने अपभ्रंश भाषा में 10 संधियों में करकंडचरिउ लिखकर करकंडु की यशःकौमुदी को दिग्दिगन्तव्यापी बनाया है । यह डॉ० हीरालाल जैन के संपादन, अनुवाद और विस्तृत प्रस्तावना के साथ प्रकाशित हो चुका है । करकंडचरित की अन्तिम प्रशस्ति के अनुसार कनकामर ब्राह्मणों के पवित्र चन्द्रर्षि गोत्र

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