Book Title: Jain Vidya 08
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 71
________________ जैनविद्या 57 और पद्मावत में ये सारे तत्त्व उपलब्ध होते हैं जिन्हें पूर्वोक्त कथानकरूढ़ियों में स्पष्टतः देखा जा सकता है। पद्मावत पर वस्तुतः अपभ्रंश कथाकाव्यों का प्रभाव अधिक है। उसकी कथावस्तु, पात्र, चरित्र-चित्रण, कथोपकथन शैली और उद्देश्य सभी कुछ उनका अनुकरण करते हुए दिखाई देते हैं । सम्प्रदाय और धर्म में अन्तर हो जाने के कारण तदनुसार परिवर्तन तो स्वाभाविक है ही पर उसे हम आमूल परिवर्तन नहीं कह सकते । पद्मावत की कथावस्तु का पर्यवसान दुःख में होता है । अतः वह सुखान्त नहीं, दुःखान्त है । परन्तु समूची जैन किंवा भारतीय काव्य परम्परा का अनुसरण करते हुए कनकामर ने करकण्डु को सुखान्त बनाया है और युद्धोपरांत करकण्डु को तपस्वी बनाकर उच्च गति प्राप्ति की सूचना दी है । पद्मावत दुःखान्त भले ही हो पर प्रतीकात्मक पद्धति के अनुसार रत्नसेन का जीव पद्मावती रूपी ब्रह्म में अन्तर्लीन हो गया अतः उसे प्राध्यात्मिक दृष्टि से सुखान्त क्यों नहीं कहा जा सकता ? 15वीं शती में राजपूत युग के दर्शन के अनुसार पद्मावत का चित्रण हुआ है और अंततः उसे आध्यात्मिकता के साथ जोड़ दिया गया । प्रेम का प्रौढ़तर रूप दोनों काव्यों में आद्योपांत है । सारी कथावस्तु दोनों काव्यों में राज-दरबारों में घूमती रहती है । पशु-पक्षी और अमानुषिक शक्तियां कथाप्रवाह में योग देती हैं, विद्याधर, शुक, गज, अश्व, पद्मावती आदि सभी के आश्चर्यमिश्रित क्रिया-कलाप यहां दिखाई देते हैं । पद्मावती का हीरामन, नागमति का पक्षी, राक्षस, शिव-पार्वती और लक्ष्मी भी इसी रूप में वर्णित हैं। पूर्वार्द्ध में षड्ऋतु वर्णन के माध्यम से प्रेम की पीर एवं प्रेमपथ की यात्रा का वर्णन है और उत्तरार्द्ध में प्रेम-परीक्षा की जाती है अतः घटनामों का बाहुल्य है इसलिए कथानक का विकास अवरुद्ध सा दिखाई देता है । करकण्डु का कथानक भी अवांतर कथाओं में उलझता हुआ आगे बढ़ता है। पाठक को मूलकथा खोजने के लिए आयास करना पड़ता है इसलिए यहां भी कथाप्रवाह की सरिता में कटाव सा आ जाता है, पर उत्सुकता अवश्य बनी रहती है। - करकण्ड के चरित्र लौकिक और अलौकिक दोनों कोटियों के हैं । लौकिक पात्रों में घाड़ीवाहन, करकण्डु, पद्मावती, रत्नावली, रतिवेगा, मातंग, नरवाहन प्रादि हैं और अलौकिक पात्रों में विद्याधर, राक्षस, नागकुमार, पद्मावती देवी आदि का समावेश हो जाता है । ये अलौकिक पात्र लौकिक पात्र जैसे सामने आते हैं। लौकिक पात्रों को भी दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-1. काल्पनिक और 2. प्राकृतिक । काल्पनिक पात्रों में विद्याधर और राक्षस आदि आ जाते हैं और प्राकृतिक में शुक, गज, अश्व प्रादि पशु-पक्षी तथा करकण्डु रत्नावली आदि मानवीय वर्ग के चरित्रों पर विचार किया गया है। पद्मावत में भी इसी प्रकार के पात्र चित्रित हैं । पात्रों के चरित्र-चित्रण करने में पूर्ववर्ती परम्परा का अनुसरण दोनों में लिया गया है । नायक धीरोदात्त, अतिशय पराक्रमी तथा एकाधिक राजकुमारियों से परिणय करनेवाला होता था। करकण्डचरिउ का नायक करकण्डु भी इस अद्वितीय प्रतिभावाला है । करकण्डु जब सिंहल से रानी रतिवेगा के साथ समुद्री मार्ग से लौट रहा था तो एक भीमकाय मच्छ ने उनकी नौका पर आक्रमण किया। उसी समय करकण्डु मल्ल गांठ बांधकर समुद्र में कूद पड़ा और मच्छ को मार डाला (7.10) । पद्मावत का राजा रत्नसेन

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