Book Title: Jain Vidya 08
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 95
________________ जनविद्या 81 51. अम्हहं भ्यसाम्भ्याम् 4/380 अम्हहं [ (म्यस्) + (प्राम्भ्याम्)] प्रम्हहं (अम्हह) 1/1 [(म्यस्)-(प्राम्) 3/2] (अस्मद्-→प्रम्ह से परे) भ्यस् और पाम् सहित प्रम्हहं (होता है)। अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग में अस्मद् →अम्ह से परे भ्यस् (पंचमी बहुवचन का प्रत्यय) तथा प्राम् (षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय) सहित प्रम्हहं होता है । प्रम्ह (पु., नपुं., स्त्री.)-(अम्ह + भ्यस्) = अम्हहं (पंचमी बहुवचन) __ (अम्ह+आम्) = अम्हहं (षष्ठी बहुवचन) 52. सुपा अम्हासु 4/381 सुपा (सुप्) 3/1 अम्हासु (अम्हासु) 1/1 (अस्मद्→प्रम्ह से परे) सुप् सहित अम्हासु (होता है)। अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग में अस्मद्→अम्ह से परे सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) सहित अम्हासु होता है। प्रम्ह (पु., नपुं., स्त्री.)- (अम्ह+ सुप्) = अम्हासु (सप्तमी बहुवचन) ऊपर हमने संज्ञा और सर्वनाम शब्दों की विभक्तियों से सम्बन्धित 52 सूत्रों का का विवेचन प्रस्तुत किया है। इन सूत्रों से फलित संज्ञा और सर्वनाम शब्दों के रूप एक साथ प्रागे प्रस्तुत किये जा रहे हैं।

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