Book Title: Jain Vidya 08
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 107
________________ जनविद्या 93 तीनों लिंगों में तुम्ह (तुम) एकवचन बहुवचन प्र. तुहुं तुम्हे, तुम्हई द्वि. पई, तई तुम्हे, तुम्हई त. पई, तई तुम्हेहिं तीनों लिंगों में काई (कोन, क्या, कौनसा) सभी वचनों, विभक्तियों एवं लिंगों में 'काई' सदैव काइं ही रहता है। (अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, द्वारा वीरेन्द्र श्रीवास्तव पृष्ठ, 180) A.AAAAब व तउ, तुज्झ, तुध्र तुम्हहं पं. तउ, तुज्झ, तुध्र स. पई, तइं तुम्हहं तुम्हासु नोट-हेमचन्द्र की अपभ्रंश व्याकरण के अनुसार ऊपर संज्ञा व सर्वनामों के रूप (जो सूत्रों से फलित हैं) दिये गये हैं । अपभ्रंश-साहित्य में प्राकृत के रूपों का प्रयोग शताब्दियों तक किया जाता रहा । प्राकृत के सूत्रों का विवेचन इस दृष्टि से महत्त्व का है । इन सूत्रों का विवेचन पत्रिका के अगले अंकों में प्रस्तुत किया जायेगा।

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