Book Title: Jain Vidya 08
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 52
________________ 38 जनविद्या करकंडु की तीसरी कथा दिगम्बर-परम्परा-मान्य कथा है । इसका मूल आधार कनकामर मुनि कृत करकंडचरिउ है । कथा इस प्रकार है अंगदेश की चम्पापुरी नगरी में धाड़ीवाहन राजा राज्य करते थे जिनकी रानी का नाम पद्मावती था। रानी को दोहला होने पर राजा उसके साथ हाथी पर बैठ नगर भ्रमणार्थ निकला, पर हाथी उन्हें जंगल में ले गया। रानी के समझाने पर राजा एक पेड़ की डाल पकड़कर बच गया और नगरी में आ गया। रानी भी हाथी के तालाब में घुसने पर, उतरकर वन में भागी। रानी के प्रवेश से वह वन हरा-भरा हो गया। फलतः माली ने उसे बहिन बनाकर रखा पर मालिन द्वारा घर से निकाले जाने पर रानी श्मशान में आयी और वहीं उसने एक पुत्र को जन्म दिया। रानी के पुत्र को चांडाल के रूप में शापग्रस्त एक विद्याधर ले गया । बड़ा होने पर उसने उसे सभी विद्याओं व कलानों में पारंगत किया। हाथ में कण्डू अर्थात् सूखी खुजली होने से उनका नाम करकण्डु रखा । दंतपुर के राजा के निःसंतान मरने पर हाथी द्वारा करकण्डु का अभिषेक किये जाने के कारण करकंडु राजा बन गया। विद्याधर शाप से मुक्त हुआ । उसे अपनी ऋद्धियां पुनः प्राप्त हो गयीं। करकंडु का मदनावली से विवाह होने पर चम्पानगर के राजा का दूत पाया और उसने चम्पा नरेश के आधिपत्य को स्वीकार करने का निवेदन किया । प्रस्ताव अस्वीकार करने पर दधिवाहन और करकण्डु के मध्य युद्ध हुआ तब पद्मावती ने पाकर पिता-पुत्र का मिलन कराया। दधिवाहन ने अपना राज्य करकंडु को सौंपा और वे प्रवजित हो गये । करकंडु ने दक्षिण भारत विजयार्थ प्रस्थान किया। रास्ते में तेरापुर नगर के पास एक गुफा में भगवान् पार्श्वनाथ के दर्शन किये । गुफा में एक गांठ के खुदवाने पर जलप्रवाह निकला। विद्याधर ने पाकर उस प्रवाह को रोका और गुफा का इतिहास बताया तथा एक और गुफा बनवायी । एक विद्याधर हाथी का रूप बनाकर मदनावली को हर ले गया । एक अन्य विद्याधर के समझाने पर और पुनर्मिलन का प्राश्वासन पाने के बाद वे आगे बढ़े। करकंड ने सिंहलद्वीप की राजपुत्री रतिवेगा और समुद्र की विद्याधरी से विवाह कर चोल, चेर और पाण्ड्य नरेशों को जीता । लौटते समय तेरापुर में मदनावली से पुनमिलन हुआ। शीलगुप्त मुनि से तीन प्रश्न करने और उनका उत्तर पाने पर करकण्डु राजा ने वैराग्य धारण किया और वे पुत्र को राज्य दे मुनि हो गये । रानियों ने भी उनका अनुकरण किया। करकण्ड ने घोर तपस्या कर सर्वार्थसिद्धि को प्राप्त किया। श्वेताम्बर साहित्य में करकंड प्रत्येकबुद्ध के रूप में समादृत हैं यहां प्रत्येकबुद्धचरित्र विषयक साहित्य का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है ।

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