Book Title: Jain Vidya 08
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 50
________________ जनविद्या मोक्ष चले जायं । ये गच्छवास में नहीं रहते और प्रायः एकल-विहारी होते हैं । इनकी संख्या के संदर्भ में विवाद है । उत्तराध्ययन सूत्र में चार प्रत्येकबुद्धों का उल्लेख हुआ है । ऋषिभाषित सूत्र में 45 प्रत्येकबुद्धों के उपदेश संगृहीत हैं । नन्दिसूत्र के अनुसार श्रौत्पातिकी, वैनायिकी कार्मिकी, पारिणामिकी बुद्धि से युक्त जो मुनि होते हैं वे प्रत्येकबुद्ध कहलाते हैं । इस प्रकार अनंत प्रत्येकबुद्ध माने गये हैं किन्तु उत्तराध्ययन सूत्र में उल्लिखित करकंडु, नग्गई, नमि और दुर्मुख पर ही प्रभूत साहित्य रचा गया है । यद्यपि कुम्मापुत्र, अम्बड, शालिभद्र प्रादि पर भी रचनाएं प्राप्त होती हैं पर वे अत्यन्त न्यून हैं । बौद्ध साहित्य के पिटकों की परम्परानुसार दो प्रकार के बुद्ध बताये गये हैं । सम्यक्सम्बुद्ध और प्रत्येकबुद्ध । जो समस्त धर्मों को सम्यक् रूप से जान लेता है उसे सम्यक्सम्बुद्ध कहा जाता है । प्रत्येकबुद्ध आधुनिक विद्वानों के अनुसार मौनबुद्ध हैं, अतः ऐसे बुद्ध अनाचर्यक भाव से प्रत्येक सम्बोधि को प्राप्त किये रहते है पर धर्मोपदेश नहीं करते । वे स्वयं तीर्ण रहते हैं पर जनसमूह के तरणार्थ धर्मशासन की स्थापना नहीं करते । अभिधर्मकोष भाष्य में कहा गया है-'विनोपदेशेनात्मनमेकं प्रतिबुद्धा इति प्रत्येकबुद्धाः' ।' इसी प्रकार चुल्लनिदेस में प्रत्येकबुद्ध को नौ कारणों से एकल-विहारी कहा गया है। उनकी सम्बोधि के संदर्भ में कहा गया है कि वे दो असंख्येय एक लाख कल्प तक पारमिताओं की परिपूर्ति कर प्रत्येक सम्बोधि को प्राप्त करते हैं । बौद्ध साहित्य में इन प्रत्येकबुद्धों की निश्चित संख्या नहीं बतायी गयी है । करकंड का बौद्ध साहित्य में प्रत्येकबुद्ध के रूप में वर्णन तो हुआ है पर जैन साहित्य जैसी कथा वहां प्राप्त नहीं है, मात्र इतनी समानता है कि करकंडु एक वृक्ष को देखकर राजपाट त्यागकर वन में चले जाते हैं और बुद्धत्व प्राप्त करते हैं। ___ करकंडचरित विषयक साहित्य के विवेचन से पूर्व करकंड की कथा को सामान्य रूप से संक्षेप में जान लेना असमीचीन नहीं होगा । करकंड की कथा तीन रूपों में उपलब्ध होती है-दिगम्बर परम्परानुसार, श्वेताम्बर परम्परानुसार और बौद्ध परम्परानुसार । बौद्ध परम्परा में कुम्भकार जातक में करकंड या करंडु राजा की कथा इस प्रकार है बनारस नगरी में राजा ब्रह्मदत्त के शासनकाल में बुद्ध ने कुम्भकार के घर में जन्म लिया । तभी कलिंग देश के दन्तिपुर नगर के राजा करकंड सपरिवार उद्यान में गये। वहां उन्होंने आम्रवृक्ष से एक पका आम तोड़ा । तत्पश्चात् साथ में आये सभी जनों ने आम्रफलों को तोड़ा । करकंड ने उस फलहीन आम्रवृक्ष को तथा पहिले से ही फलरहित आम्रवृक्ष को देखकर विचार किया-'गृहस्थ धर्म उस फलित वृक्ष के समान है जिसकी दुर्गति होती है किन्तु प्रव्रज्या उस फलहीन वृक्ष के समान है जिसे कहीं से किसी अनिष्ट का भय नहीं है । मैं भी

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