Book Title: Jain Vidya 08
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 51
________________ जैनविद्या 37 इसी के सदृश बनूं ।' ऐसा सोच वे राजपाट त्याग वन में चले गये और बुद्धपद प्राप्त किया। . जातक में कलिंग के करण्डराय के अतिरिक्त गंधार के नग्गजी, विदेह के निमिराज और पांचाल के दुम्मुख के भी कथानक हैं और अन्त में यह गाथा कही गयी है करण्ड नाम कलिंगानं गंधारानं च नग्गजी । निमिराजा विदेहानां पंचालानं च दुम्मुखो ॥ एते रटानि हित्वान पजिसु अकिंचना ॥ उक्त संदर्भ को उत्तराध्ययन सूत्र के पीछे दिये गये संदर्भ (संदर्भ संख्या 4) से मिलाकर देखें तो नामों में बड़ी समानता है। करकंड की दूसरी कथा उत्तराध्ययन सूत्र के टीकाकार देवेन्द्रगणी ने अपनी सुखबोधा टीका में कही है जो इस प्रकार है चम्पानगरी में दधिवाहन राजा तथा पद्मावती रानी राज्य करते थे। दोहला होने पर रानी-राजा हाथी पर बैठ कर नगर सैर को गये पर हाथी उन्हें लेकर जंगल में चला गया । एक वटवृक्ष के नीचे से निकलते समय राजा ने उस वृक्ष की शाखा को पकड़ लिया और दुःखी हो अपने नगर लौट पाया । उधर रानी ने हाथी के एक तालाब में घुसने पर दंतपुर नगर के समीप साध्वियों के आश्रम में प्रव्रज्या ग्रहण कर ली पर गर्म की बात नहीं बतायी । गुप्तरूप से प्रसव करके बालक को कम्बल में, लपेटकर नाममुद्रा लगाकर श्मशान में डाल दिया। श्मसान रक्षक ने उसे अपनी पत्नी को दे दिया । बालक के बड़े होने पर उसे सूखी खुजली होने से उसका नाम करकंड पड़ गया । एक बार श्मशान में आये दो मुनिराजों में से एक ने कहा कि सामने का बांस चार अंगुल बढ़ने पर जो उसे लेगा वही राजा होगा। करकंड ने यह बात सुन ली और किसी प्रकार विजों से बचाकर बांस को लेकर कंचनपुर गया। वहां का राजा निःसंतान मर गया था अतः घोड़ा छोड़ा गया, जिसने करकंड की प्रदक्षिणा की। अतएव नागरिकों ने करकंडु को राजा बना दिया । करकंडु ने चंपा के राजा के पास एक गांव देने के लिए एक ब्राह्मण भेजा । मना करने पर करकंड ने चंपा पर चढ़ाई कर दी। पता चलने पर पद्मावती (करकंड की मां) ने पिता-पुत्र का मैल कराया । दधिवाहन दोनों राज्य देकर प्रवजित हो गये । करकंडु ने एक वृषभ को दूध पिलाने का आदेश देकर सांड बनाया, अंत में उसके जीर्ण हो जाने पर उसे देख करकंड को बड़ा विषाद हुआ, उसने सोचा संसार में सब अनिश्चित और अस्थिर है, इष्टजनसंगम भी चिरस्थायी नहीं, यह सोचता हुआ वह प्रत्येकबुद्ध हो गया। ' उसने पंचमुष्टि केशलोंच किया और देवता द्वारा दिये गये वेष से लोक में विहार करने लगा।

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