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जनविद्या
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तुमं जेठ्ठउत्तो, सुईणे विसुत्तो।। तहे देहि दवं, णिवारेहि गव्वं ।। 8.4
X माणि सेट्ठि पारिसो वि, देमि दव जेम को वि। बप्पणस्स मझे बिबु, लेहि प्रक्क एहु दन्छ । तं सुरिणवि पडुत्तर सा भरिणय सुइणई कि गहणउ लहइ चले।
8.5
ता सूएं उच्चाएवि पाउ, अहिणंबिउ पासीवाएं राउ । पतिवज्जइ जणवर पाहचार, तह कवडकहाणउ रयउ फार।
8.7
तहि चरिउ गरेसर सहुँ सुएण, देवाविउ फेरउ विढभएण। ता कीरें गयणंगणु सरेवि, अवलोइउ पाणिउ थिरु करेवि।
8.9
सूएण णराहिउ तक्खणेण, अणुमग्गे पीयउ तहुँ तणेण । अवरोप्पर चित्तें मिलियएण, ता तक्खरिण भरिणयउ सूयएण। हे परवइ तुहुँ एह रयणलेह, लइ परिणहि कंचरणदिव्वदेह।
8.10
तहो कहिय वत्त तेहि मि सुएहि, पण भरिणय ते वि वयणल्लएहि। 8.13
भरे सुप भायर प्रावहि एत्थु, तुहारउ सामिउ अच्छाइ केत्यु।
8.14
अश्व संबंधी अभिप्राय का निबंधन 'पंचतंत्र' की कयन भंगिमा से होता है । घोड़ा भी वह ऐसा है कि जमीन से उसका पर ही नहीं लगता है । राजा भूल से कशाघात कर देता है और घोड़ा ले उड़ता है । वह सागरतट पर ले जाकर छोड़ता है । समुद्र संतरण में यह घोड़ा भी बिछुड़ जाता है और एक टक्क के हाथ पड़ जाता है । राजा उसे पुनः क्रय कर लेता है । राजपरिवार की परीक्षा के अवसर का आयोजन इस शौर्य के माध्यम से हुआ है और शौर्य-धर्य के प्रकाशन के लिए प्रकरण निकल आया है । अश्व में भी वेग-वैचित्र्य के अतिरिक्त अन्य किसी विशेषता का उल्लेख नहीं है
तहिं विट्ठउ गिरिवरतणउ प्रासु, गउ वडवासंगहो कामवासु । मासुंदर घोडउ ताएँ जाउ, परणियले लग्गइ पाहि पाउ । मई जारिणउ सो विज्जाहरेण, तुह प्रक्खिय गेहपरव्वसेण । घरि अच्छइ मंतिहे सो चरंतु, तं सुरिणवि गरेसर गउ तुरंतु। 8.8