Book Title: Jain Vidya 08
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 36
________________ ええ तहि रएन । पछिंदें प्रायहँ केरएण, जिर्णावब करावहुँ उ मणिवि प्रभत्तीभरेहि, संगहिय पडिम बेहिमि करेहिं । जिणपासही बहुरयर्णाहं कलीय, उच्चाएवि सा ते संचलीय । X X X तर्हि दणहत्ति करेवि बे वि, णियपडिमहिं सम्मुहँ गय वलेवि । तहिँ जाइवि सा पुणु लेहिं जाम, णिययाणहो ण चलइ पडिम ताम । मंजूस करेवि तो भय एहिँ, णिक्खणिवि मुक्क भूमीएँ तेहिँ । भारतीय साहित्य में चित्रदर्शन से प्रेमोत्पत्ति की एक दीर्घ वर्णन करकंड चित्रपट को देखकर मुग्ध हो जाता है और उसमें संज्वर और व्याधि के होने लगते हैं सो भणिय करकण्ड णिवेण, पडु अप्यहि देक्खहुँ सहुँ हिएन । ता तेण समप्पिउ पत्थिवासु, जणु रस्तउ प्रणुराएण जासु । सो पंचवण्णु गुणगणसहंतु, करकण्डई जोयिउ पड़ महंतु । ताहिँ रूउ सलक्खणु तेण बिट्ठ, णं मयणवाणु हियवएँ पइट्ठ । मुहकमल सउहउ दोहसासु, जरु बाहु अरोचकु हुयउ तासु । करडई जोइउ पड़ पवरु थिउ हियवएँ विंभिउ एक्कु खणु । लय कहिय तहो विरहु ते मउलिउ णवणिउ विमणमणु । तें काणि जइवरु एक्कु बिट्टु, तहो तोसु महंतउ मणे पठ्ठे । खेलंतु अहेडउ रायउत्तु ता तेत्थु खणों को विपत्तु । परम्परा है । चिह्न प्रकट पंचाणु विसs जहिं समत्थु मई सवणु सुहावउ लघु एत्थु । तहो फलइँ लहेसमि रायलच्छ, भुंजेसमि मेइणि हरियकुच्छि । महो देहि भडारा सवणु एह, लइ भूसणु घोडउ दिव्वदेहु । fararaणदेविएँ तो पुरउ णियविज्जएं णिम्मिउ जं जि तणु । तं. मेल्लिवि कीयउ अवरु पुणु पेक्खतहँ पसरइ जेण: मणु I जैन विद्या 5.7 कोक्काइवि मालिउ कुसुमदत्तु, संसएण पपुच्छिउ निविडगत्तु । तुह तणिय बाल कि होइ एह, किं श्रणहो कासु वि कहि सह । 5.8 3.4 7.1. 7.2 अशुभ कन्या को नदी में बहा देने की भी एक वर्णन रूढ़ि अनेक ग्रन्थों में मिलती है । 'महाभारत' में कर्ण को गंगा में बहा दिया जाता है और 'पउमचरिय' में सीता को मन्दोदरी बहा देती है क्योंकि वह अपने पिता के लिए अशुभ बताई गई है । 'कउ' में पद्मावती को इसी कारण यमुना में बहा दिया जाता है जिसे माली की पत्नी कुसुमदत्ता पकड़ती है । उसमें स्वर्णमयी अंगुली - मोहर लगी है जिस पर उसके माता-पिता का नाम लिखा है । • इससे उसके कुलशील की पहचान हो जाती है—

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