Book Title: Jain Vidya 08
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 25
________________ जनविद्या 11 देव आदि-सभी जितने तीव्र जीवनकंटकों को दलित करते हैं, उतनी ही गौरव-सौरभ बिखराते हैं, उपेक्षितों तक में अपनी पहचान होने की व्यापकता बनाते हैं-मैं सबमें हूँ और सब मुझ में, सभी स्पृहणीय मूल्यों की सर्वत्र प्रतिष्ठा करते हैं । कथानक की सभी परिघटनाएं सावयवीरूप से संयोजित हैं, वे सम्पुर्ण की उपकारक हैं और खंड की पूरक । इस कारण कहीं जोड़-तोड़ नहीं दिखता, एक सहज प्रवाह ही प्रतीत होता है। इन परिघटनाओं को मोटे तौर पर तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, 1. अभिप्राय, 2. रूढ़ियां और 3. विश्वास । अभिप्राय भी एक ही सांचे-ढांचे के नहीं हैं । उनके अनेक रूप हैं, अनेक स्रोत हैं। कुछ अभिप्राय मनुष्यों से सम्बन्धित हैं और कुछ मानवेतर प्राणियों से । साधनापरक अभिप्राय भी हैं। रूढ़ियों में सज्जन-प्रशंसा, दुर्जन-निन्दा, उपसर्ग, भवान्तर आदि से सम्बन्धित अधिक उल्लेख्य हैं । विश्वासों में शकुन, अपशकुन आदि की भूमिका अधिक स्फुट है। मानवसम्बन्धी अभिप्राय मानवसम्बन्धी एक अभिप्राय तब दृष्टिगोचर होता है जब रचनाकार राज्य के उत्तराधिकारी के चयन की विधि के वर्णन में दत्तचित्त होता है । वर्णन स्वभावोक्ति अलंकार, मनोवेगात्मक रभस और घटना के अकल्पनीय मोड़ सम्बन्धी विस्मय से अनुप्राणित हैवियरंतवइरिविद्धावणासु, दुस्सीलरायभयदावणासु । जणु प्राण ण लंघइ तणिय जासु, हुउ गरि गरिवही गासु तासु । X जणु जंपइ को वि ग प्रत्थि कुमरु, जे रज्जु करेसइ एस्थ पवरु । ता मंतिमणहो परिफुरिउ मंतु, अवलोयउ गयवरु लडहदंतु । तं पुज्जिवि मयगल मइवरई, परिपुण्णउ कुंभु समप्पियउ । जो रज्जु करेसइ तहो उवरि, ढालेसहि एउ वियप्पियउ ॥ 2.19 उपर्युक्त सभी विशेषण पारदर्शी हैं और सूझ अन्तर्जात हैस पुण्णउ कुंभु करेण करंतु, छणिदु व पव्वसिंगु संरतु । पुरम्मि घरेण घराई लहंतु, समुण्णइ तो वि समग्ग वस्तु । भमेविण पट्टणु चच्चरवंतु, गमो गउ बाहिरि दूरे भमंतु । मसाणहो माझे . अउन्वउ मारु, गएण तुरंतएँ विठ्ठ कुमार । मुसोहणु कुंभु सिरेणं, गएण, सिरम्मि विरेइउ तासु गएण । 2.20 यह क्या विडंबना ? सब लोग सिर धुनने लगे। महान् रव व्याप्त हो गया, इस करिवर ने यह क्या किया ? चांडाल के ऊपर कलश ढाल दिया। प्रश्न कुल-शील जिज्ञासा का खड़ा हो गया । रचनाकर ने बड़े कौशलपूर्वक पूरक इतिवृत्त से अनुस्यूत किया है उदुम्मण अहिं जा मणम्मि, खेयरहो ताम तहिं तक्खणम्मि । मुरिणदिष्ण सावें जउ गासियाउ, विज्जाउ पराइउ तासु ताउ ।

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